मंगलवार, 10 नवंबर 2009

एक पुरातत्ववेता की डायरी -दसवां दिन - छह


नेताओं के अल्पज्ञान के बारे में हम ढेर सारे किस्से सुनते हैं ,कई चुटकुले भी मशहूर है  जैसे एक नेता भाषण दे रहे थे हमारे देश मे तीन तरह के खेल होते है एक सेमी फाईनल एक फाईनल और एक ओलम्पिक .हाँलाकि अब तो नेताओं को ज़्यादा जानकारी रहती है और उनके पास उनके अधिकारी भी होते है । लेकिन इतिहास और पुरातत्व के बारे मे अब भी वही हाल है । लीजिये प्रस्तुत है एक नेता जी का एक सच्चा किस्सा जो हमे बरसों पहले डॉ. वाकणकर जी ने सुनाया था ।  
एक पुरातत्ववेता की डायरी -नौवाँ दिन -दो 
सरकार का पैसा क्या फालतू समझ रखा है ..बस ऊंडे जाओ ऊंडे जाओ
“ क्या यार इतने दिनों से खुदाई कर रहे हैं बस इतना ही खोद पाये । “ अजय ने खीझते हुए कहा । जाने कैसे डॉ. वाकणकर ने उसकी बात सुन ली और कहा “ धीरज रखो बेटा पुरातत्व की खुदाई इतनी आसान नहीं है । यह गढ्ढा खोदने का काम नहीं  है , रोज़ थोड़ा थोड़ा खोदते हुए आगे बढ़ना होता है , किसी वैज्ञानिक की तरह .किसी खोजी की तरह , किसी चिकित्सक की तरह । हम लोग पहले से ही मायूस थे ,उनकी बात सुनकर और मायूस हो गये । सर हम लोगों की उदासी भाँप गये । और फिर अचानक उन्होने कहा “ अरे दुष्टों इसमे उदास होने की क्या बात , चलो तुमको एक बढ़िया किस्सा सुनाता हूँ । 
एक बार कि नई क्या हुआ हम लोग एक साइट पर खुदाई कर रहे थे । एक माह से काम चल रहा था और एक ट्रेंच से बहुत महत्वपूर्ण तथ्य मिल रहे थे । कुछ भी नष्ट न हो इसलिये हम सावधानी से काम ले रहे थे ।एक दिन वहाँ एक नेताजी घूमते हुए आ गये । ट्रेंच को देखते हुए उन्होने अपने अन्दाज़ में पूछा “ हूँ... कितने दिनों से खुदाई चल रही है ? “ हमने बताया “ साब एक माह से । “ इतना सुनते ही वे आग बबूला हो गये और ट्रेंच की ओर इशारा करके चिल्लाने लगे “ एक महीने से खुदाई चल रही है और बस इतना ही खोदा है आप लोगों ने ? " फिर उन्होने मजदूरों की भीड़ देखी  तो और नाराज़ हुए .."कितने आदमी लगा रखे हैं .. सरकार का पैसा क्या फालतू समझ रखा है जो इस तरह बरबाद कर रहे हो ।अगर ठीक से खोदना नहीं आता तो बन्द कर दो खुदाई ।" इससे पहले कि हम उन्हे कुछ समझा पाते कि पुरातत्व की खुदाई और गढ्ढा खोदने मे फर्क होता है ..वे गुस्से मे निकल गये और जाते जाते कह गये ..” अभी तीन दिन बाद मैं फिर इधर आउंगा ,मुझे ठीक- ठाक काम दिखना चाहिये “
 “बस फिर क्या था “ सर ने कहा “ मेने दो मज़दूरों को बुलाया और साइट से बाहर दूर की एक ज़मीन बताकर कहा “ वहाँ खोद डालो रे जितना खोद सको ,बस ऊंडे जाओ ऊंडे जाओ  ।ये नेताजी को बड़ा सा गढ्ढा देखना है ..इन्हे इतिहास .तकनीकी और पुरातत्व विज्ञान से क्या मतलब ।“ तो ऐसा है अपने सत्ताधीशों का पुरातत्व ज्ञान । 
डॉ. वाकणकर की बात सुनकर हम लोग हँस हँस कर लोट पोट हो गये । सर ने कुछ देर बाद गम्भीर होकर कहा “ ऐसा नहीं है कि वे कुछ नहीं जानते या यह केवल तकनीकी ज्ञान के अभाव के वज़ह से उनका यह व्यवहार है । यह मनोवृति इतिहास को गैरज़रूरी समझने के कारण है । इतिहास बोध तो अपनी जगह है लेकिन अतीत को लोग इसलिये भी रहस्यमय मानते हैं कि   वो उनकी समझ से परे है ।  
अब डॉ. वाकणकर जैसे विद्वान पुराविद ने यह बात कह दी तो मै क्या कह सकता हूँ ..प्रतीक्षा है उनकी इस बात पर आपकी प्रतिक्रिया की - चित्र गूगल से साभार                                                                                             

आपका - शरद कोकास                                                                                               

15 टिप्‍पणियां:

  1. @ ....अतीत को लोग इसलिये भी रहस्यमय मानते हैं कि वो उनकी समझ से परे है।
    खरी बात। इतिहास गैर जरूरी कहाँ एकदम जरूरी हो गया है - इसका प्रयोग लोगों को आपस में लड़ाने के लिए हो रहा है। मजे की बात यह है कि उस समय अतीत हस्तामलकवत हो जाता है - सब ऐसे बताते हैं जैसे उनके सामने की बात हो। रहस्यमय अतीत ही नहीं, मनुष्य की बुद्धि भी है।

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  2. वाकया अच्छा लगा पढ़कर। मजेदार भी लगा

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  3. बस ऊंडे जाओ ऊंडे जाओ- नेताजी का कसुर नही है ये तो उनकी फ़ितरत का असर है बस हर जगह बस ऊंडे जाओ ऊंडे जाओ, यही तो एक मात्र काम आता है इनको भले ही उंडे हुए मे खुद ही गिर जाएं।

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  4. bahut badhiya. ateet ko chahe wah itihas ho ya apne jeewan ka ateet kabhi nahi bhoolna chahiye
    haan jahan tak jameen khudai kar pracheen yug ki baat janne se hai to jo vyakti sambandhit vishay se pare rahega arthat un kitabon ko kabhi padha nahi rahega uske liye samajh se pare hona swabhavik hai.

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  5. " behatrin ..bahut hi accha laga padhker "
    " is jankari ke liye dhanyawad "

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  6. इतिहास बोध तो अपनी जगह है लेकिन अतीत को लोग इसलिये भी रहस्यमय मानते हैं कि वो उनकी समझ से परे है ।

    -सत्य वचन..अच्छा वाकया लगा.

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  7. दरअसल इस श्रृखला से मैं शुरू से ही जुड़ नहीं पाया -अब नियमित कोशिश कर देखता हूँ !

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  8. शरद जी,
    इन नेताओं को उसी बड़े गड्डे में डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दो...

    शायद उस सूरत में देशवासियों का उद्धार हो जाए, वरना ये तो हमें पाताल में ले ही जा रहे हैं...

    जय हिंद...

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  9. अतीत को लोग इसलिये भी रहस्यमय मानते हैं कि वो उनकी समझ से परे है। लेकिन आज के नेता लोग अतीत को अच्छी तरह समझते हैं खि उनके पूर्वज तो बेवकूफ थे जो इतने विकास से भी पैसा न कमा सके। इस लिये वो अतीत को ना समझने का ढोंग भी करते हैं। बहुत अच्छी रचना है धन्यवाद्

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  10. अजी क्या प्रतिक्रिया दें.
    हमने तो आज तक कभी खुदाई देखी ही नहीं है. क्या आपने कभी उत्तर में खासतौर से हिमालय क्षेत्र में खुदाई की है? अगर हाँ तो कहाँ? सच कह रहा हूँ साल ख़त्म होने से पहले ही देख आऊंगा.

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  11. "ऐसा नहीं है कि वे कुछ नहीं जानते ..."

    बिल्कुल जानते हैं जी, कम से कम 'भ्रष्टाचार कैसे करें' तो जानते ही हैं।

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  12. बेवकूफों की कमी नही है दुनिया में, हमारे जनप्रतिनिधि (अधिकांश ) इसके उत्तम उदहारण हैं.

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  13. सही कहा आपने। शायद इसीलिए अतीत को ग्लोरीफाई करके प्रस्तुत किया जाता है।
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    11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
    गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

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  14. अतीत से डर लगता है शायद इसलिए नेता लोग अतीत से डरते है लेकिन अतीत से बहुत कुछ सीखा जा सकता है क्योकि इतिहास अपने को दोहराता जरूर है ।ऋषिकेश की पौराणिकता व इतिहास जानने मे रूचि रखने वालो के लिए मेरा ब्लाग, गंगा के करीब काम आ सकता है।
    view Ganga Ke Kareeb http://sunitakhatri.blogspot.com

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  15. ये तो बिल्कुल वैसे ही है जैसे जलविद्युत लगाने पर नेताजी कहते हैं कि पानी से बिजली निकाल लोगे तो उसमें बचेगा क्या.

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