tag:blogger.com,1999:blog-1532469439068129249.post1731229149256036178..comments2023-10-30T15:33:34.839+05:30Comments on पुरातत्ववेत्ता: एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी-चौथा दिन - तीन शरद कोकासhttp://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1532469439068129249.post-72374892432118276462009-07-06T22:39:08.244+05:302009-07-06T22:39:08.244+05:30मनोरंजक प्रस्तुति. अजित जी ने शायद पूछा था की दंग...मनोरंजक प्रस्तुति. अजित जी ने शायद पूछा था की दंगवाड़ा कहाँ है. क्या बताएँगे? हम भी उत्सुक हैं.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1532469439068129249.post-89840392724911691812009-07-05T07:05:29.264+05:302009-07-05T07:05:29.264+05:30अब ठीक है। हमको छोटा कैनवास अच्छा नहीं लगता। बड़ा ...अब ठीक है। हमको छोटा कैनवास अच्छा नहीं लगता। बड़ा कैनवास पकड़ो और ब्रश को बिन्दास चलाओ, सीधे आड़े तिरछे - <br />छू छा छं।<br />लोग रह जाएँ दंग।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1532469439068129249.post-64234904625097538332009-07-05T03:45:36.905+05:302009-07-05T03:45:36.905+05:30पुरातत्वेत्ता को कितना श्रम करना पड़ता है यह तो डॉ...पुरातत्वेत्ता को कितना श्रम करना पड़ता है यह तो डॉ भगवतशरण उपाध्याय की पुस्तकों और संस्मरणों से ही पता चला था। आज सुबह ही उनकी पुस्तक <b>'पुरातत्व का रोमांस' </b>मे हाईनरिख श्लीमान की ट्रॉय खोज का वर्मन पढ़ रहा था। <br />आपके अनुभवों में उसके पीछे की बहुत सी बातें पता चल रही हैं जो डॉ उपाध्याय के लेखन का हिस्सा शायद नहीं बनी। जड़ों से जुड़ रहे हैं हम। पुरातत्व का ककहरा सीख रहे हैं। <br />खिलंदड़े प्रसंग इसे रोचक बना रहे हैं। गुडजी।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com