गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी-दसवाँ -दिन - दस


 एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी-दसवाँ -दिन - दस 
खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर खून की बूँदे चुग रही है
            नाश्ते के बाद हम लोग टीले पर पहुंच गये ..बहुत बड़ा टीला और बीच में ट्रेंच । अशोक ने कहा  “ यह बिलकुल हमारे उज्जैन में जो पहलवानी के अखाड़े है उसकी तरह दिखाई दे रहा है .. अगर इसमे  मिट्टी डाल दी जाये तो यह कुश्ती के काम आ सकता है । “ रवीन्द्र के दिमाग़ मे अभी तक रोम के एम्फिथियेटर अखाड़े घूम रहे थे ..उसने पूछा .” शरद उन अखाड़ों में भी ऐसी ही मिट्टी होती थी क्या ? “ मैने कहा “ नहीं उनमे रेत होती थी क्योंकि सूर्य की रोशनी में रेत पर खून की चमकती हुई बून्दे अद्भुत दृश्य उपस्थित करती थीं जिन्हे देख कर रोम के अय्याश लोगों को बहुत मज़ा आता था ।पहले यहाँ शेर से मनुष्य को लड़वाया जाता था लेकिन जब उन्माद बढा तो मनुष्य को मनुष्य से लड़वाया जाने लगा ।“
            रवीन्द्र ने कहा “ कैसे होती थी ग्लेडियेटर्स की यह लड़ाई ?” मैने कहा चलो तुम्हे वहाँ का दृश्य दिखाता हूँ । जिस तरह हमारे यहाँ स्टेडियम होता है उस तरह का होता था यह एम्फिथियेटर बीच में यह अखाड़ा जिसे एरीना कहते हैं । जिस तरह क्रिकेट देखने के लिये भीड़ इकठ्ठा होती है उस तरह की भीड़ यहाँ उपस्थित है । ठीक वैसा ही उन्माद .. शोर । साइड की दीवार  के पास एक शेड है जहाँ ग्लेडियेटर के जोड़े लड़ने के लिये प्रतीक्षारत  हैं उसके दरवाजे से एरीना का दृश्य देखा जा सकता है । मैदान के एक ओर गाने और बजाने वालों का एक समूह बैठा है जब तक लड़ाई शुरू नहीं हो जाती यह वाद्य्यंत्रों से लोगों का मनोरंजन करता रहेगा । हर जोड़े में एक थ्रेसियन है और एक यहूदी या हब्शी अफ्रिका का रहने वाला । जोड़े के दोनो ग्लेडियेटर आपस में घर परिवार की बाते कर रहे हैं जबकि उन्हे पता है कि उनमें से एक को थोड़ी देर बाद मर जाना है ।
पहला जोड़ा एरीना में दाखिल हुआ । उन्होने अपने छुरे की मूठ को रेत से रगड़ा ,अखाड़े के उस्ताद ने अपनी चान्दी की सीटी बजाई और दोनो ग्लेडियेटर आपस में भिड़ गये । एक का छुरा चमका और दूसरे के सीने पर खून की एक लकीर खींच गई । रोमन दर्शकों ने तालियाँ बजाईं । फिर दोनों एक दूसरे से गुंथ गये जैसे उनमे बरसों पुरानी दुश्मनी हो । एक की बाँह में दूसरे का छुरा धंस गया रक्त  की एक धार निकली और रेत पर बिखर गई । वह धरती पर गिर पड़ा ,फिर लड़खड़ाता हुआ उठ खड़ा हुआ और अपने भाले से उसने दूसरे ग्लेडियेटर पर वार किया । उसका चेहरा रक्त में डूब गया ।
“बस कर यार तू तो ऐसे वर्णन कर रहा है जैसे फ्रीगंज चौराहे पर दो दादाओं की लड़ाई हो रही हो ।“ अशोक बोला । ’नहीं ऐसा नहीं है “ मैने कहा दादाओं की लड़ाई आपसी  दुश्मनी को लेकर होती है , ज़मीन को लेकर, स्त्री को लेकर , वर्चस्व को लेकर या पैसे को लेकर ।“ “ और आजकल धर्म को लेकर “ अजय ने बीच में पुछल्ला जोड़ा । “लेकिन इन ग्लेडियेटर्स की तो आपस में कोई दुश्मनी नहीं है ये धनाढ्य लोगों के मनोरंजन के लिये एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं । मैने कहा “ देखो उन में से एक ज़मीन पर गिर गया है ..खून से दोनो के जिस्म तरबतर हैं .. इधर देखने वाले लोग उन्माद से पागल हो रहे हैं मार डालो काट डालो की आवाज़ें गूंज रही हैं .. खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर गिरी खून की बून्दे चुग रही है ।
दोनो को रुका हुआ देख कर एक चाबुक लिये उस्ताद वहाँ आ गया है और दोनो की पीठ पर कोड़े बरसा रहा है ..” लड़ बे हरामज़ादे , रुक क्यों गया ?” लड़ लड़..लड़...मार डाल साले को काट डाल ..”। अगला क्या करे उसमें तो उठने की ताकत ही नहीं है । अचानक सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे हुए सम्राट की ओर से एक फरमान गूंजता है ..एक हाथ हवा में उठता है और अंगूठा नीचे झुक जाता है .. यह संकेत है ..हत्या का ।एक ग्लेडियेटर दोनो हाथ से अपना भाला उठाता है और नीचे पड़े हुए दूसरे ग्लेडियेटर के सीने में पूरी ताकत से घुसा देता है ।
एक सिपाही उस के पास पहुंचा ,उसे तसल्ली नहीं हुई वह मरा है या नहीं.. उसने अपनी कमर में बन्धा एक हथौड़ा निकाला और उसे उस ग्लेडियेटर की लाश की कनपटी पर दे मारा ..उसका भेजा चूर चूर हो गया और उसके कुछ टुकड़े हथौड़े पर चिपक गये ..सिपाही ने हथौड़ा उठाकर रोमनों का अभिवादन किया । इतने में एक और उस्ताद एक गधा लेकर वहाँ आ गया उसने लाश को एक ज़ंजीर से उस गधे से बान्ध दिया और मैदान के चक्कर लगने लगा पूरे मैदान में उस लाश से भेजे और शरीर के टुकड़े टूट टूट कर गिर रहे हैं । रोमन जनता आनन्द विभोर होकर हँस रही है, खिलखिला रही है, उन्माद में तालियाँ बजा रही है , सीटियाँ बजा रही है , नाच रही है ।
उस खूनी रेत को पलट दिया गया है और अगला जोड़ा फिर मौत के इस खूनी खेल के लिये तैयार है ।“ “बस ..बस कर यार “ रवीन्द्र चीखा “ बन्द कर तेरी यह रनिंग कमेंट्री ...बहुत हो गया ।“

          इस वीभत्स वर्णन के लिये मुझे क्षमा करें लेकिन ऐसा इतिहास में हुआ है जब एक गुलाम इंसान की जान की यही कीमत थी ..उस समय मानवाधिकार जैसी कोई चीज़ नहीं थी ..। आज हम इंसान की जान की कीमत जानते हैं फिर भी हत्याएँ होती हैं ,दंगों और दुर्घटनाओं में लोग मारे जाते हैं ..क्या हमने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है ? - शरद   कोकास ( सभी चित्र गूगल से साभार तथा वर्णन के लिये 'आदिविद्रोही ' के लेखक हावर्ड फास्ट के प्रति कृतज्ञता )    


34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भयानक है यह सब ...मगर रूप बदल कर आज भी यही सब खेला जेया रहा है ...आदमी ही आदमी के खून का प्यासा है ...पहले गुलाम होने के कारण मजबूरीवश लड़ते थे , अब दूसरों के हाथों की कठपुतलियाँ बनकर ...!!

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  2. "खून से दोनो के जिस्म तरबतर हैं .. इधर देखने वाले लोग उन्माद से पागल हो रहे हैं मार डालो काट डालो की आवाज़ें गूंज रही हैं .. "

    कौन कहता है कि मनुष्य शान्तिप्रिय अहिंसक प्राणी है?

    शरद भाई! वीभत्स रस की प्रस्तुति में माहिर हो आप!

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  3. खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर गिरी खून की बून्दे चुग रही है ।

    देखने वाले सारे दर्शक मुझे इसी चिडिया की तरह लग रहे हैं । जुल्‍म के तरीके बदल गए हैं समय के साथ साथ ।

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  4. गिरिजेश राव ने कहा- बस यही कामना है कि वीभत्स न दिखते हुए भी हमारे दौर का मानव का मानव द्वारा जारी विकृत शोषण समाप्त हो ।

    आज का शोषण अधिक खतरनाक है - दिखता नहीं और बहुत बार उसे हम महसूस भी नहीं करते !

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  5. बहुत ही लोमहर्षक विवरण था...बस सच्चाई से रूबरू होने की लालसा में पूरा आलेख पढ़ गयी...आज भी मनुष्य की हिंसक प्रवृतियां वैसी ही हैं वरना WWE (world wrestling entertainment ) show इतना लोकप्रिय कैसे होता....आज भी हज़ारों की भीड़ प्रतियोगियों के माथे से बहता खून देख वैसे ही, उन्माद से भर जाती है

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  6. sharad ji yek yetihasik post ke liye aur un kaale dino ki bhivatsh parampara ki jhaaki prtiut karne ke liye
    aap ka bhut bhut dhnybaad
    dil dard se karah raha hai
    soch raha hun
    ki kya prgati ka charmotkrs yahi tha

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  7. सच है. यही सब आज भी हो रहा है. खूनी खेल रुका कहां?

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  8. आप के लेखन विधा ने इतिहास को और आकर्षित बना दिया

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  9. शरद जी बहुत सुंदर लिखा, मै इस स्टेडियम को जो आज एक खंडहर के रुप मै खडा है देख कर आया हुं.आप ने अपने लेख मै इसे फ़िर से सचित्र कर दिया, वेसे आप का यह लेख नजर आंदाज नही हुआ, आज कल मै थोडा ब्लांग से दुर हुं.

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  10. hinsa ka swaroop badla hai ,
    parimaan nahin badla, ye sab aaj bhi jaari hai

    rongte khade ho gaye sharad ji !

    insaan itnaa khoonkhwar ho sakta hai ye soch kar hi ajib lagta hai......

    raam raam

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  11. मैदान में उस लाश से भेजे और शरीर के टुकड़े टूट टूट कर गिर रहे हैं । रोमन जनता आनन्द विभोर होकर हँस रही है, खिलखिला रही है,
    (शरद भाई क्या यही रोमन "सभ्यता" है, जिसका परचम उठाए पुरा युरोप घूम रहा है, क्या इन्हे ही "सभ्य" कहते है?

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  12. यह हृदय विदारक विवरण पढ़ने से मन खराब हुआ.
    नाजाने कैसे लोग थे उस ज़माने के?
    आज भी हत्याएँ कम नहीं हुई...इतिहास से कुछ सीखा नहीं मनुष्य ने यह भी सत्य है.
    मरने मारने के तरीके बदल गये हैं.लगता है सब कुछ वैसा ही है. इस शृंखला के पिछ्ले लेख भी पढ़ने बाकी हैं.समय मिलते ही पढ़ना चाहूँगी.

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  13. इतिहास में किस्सागोई की छौंक लगा देने से यह मजेदार हो गया है। आपका वर्णन बढ़िया लगा।

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  14. श्वेता कोकास ने कहा why in todays world dont we have wrestling matches(wwf).everything is relevant still today

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  15. सचमुच में हृदय विदारक है. इसीलिए ऐसी सामंती अत्‍याचारों का पुरजोर विरोध करती आई है जनता.

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  16. अम्बरीश अम्बुज ने यह टिप्पणी भेजी है ambarish ambuj to me
    show details 11:21 PM (1 hour ago)
    हर एपिसोड आकर पढ़ जाते the और निकल लेते the... आज सोचा कुछ कहते चलें...
    टिप्पणी post नहीं हो पा रही तो मेल कर रहा हूँ.. इन्टरनेट की समस्या है (transliteration error भी हो सकते हैं...)

    खूनी खेल ख़त्म नहीं हुआ है बस खेल के नियम कानून और तौर तरीके बदल गये हैं... wwf को हटा भी दें तो भी खूनी खेल कहाँ बंद हुआ है... और हाँ सिर्फ रोमन लोगों को क्यों दोष दें.... सीमा पर भेज देते हैं दो देश अपने सैनिक और दिल्ली/इस्लामाबाद में बैठ कर तमाशा देखते हैं... बिहार/झारखण्ड/बंगाल में रोज लोगबाग पुलिस या नक्सालवादियों का शिकार बन जाते हैं... मराठी बोलें कि न बोलें, इस बात पर गोलियां चल जाती है जिसमें मरे हमलावर पर देश दो फांक हो जाता है कि wo 'अपराधी' था या 'शहीद' हो गया... खुले आम बलात्कार और भ्रूण हत्या जैसे काण्ड होते रहते हैं... कुछ फर्क नहीं आया है.. तब भी प्रभावशाली लोग अपने मनोरंजन के लिए कुछ भी कर जाते the और आज भी कमोबेश वही स्थिति है...
    मुझे पता नहीं कहाँ पढ़ा था या फिर खुद लिखा था... "we both shot at each other. I missed, he didn't." खेल चाहे मुर्गों का हो, शेर और आदमी का हो, दो आदमी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो, खेल का अंत तो यही होता है....

    PS - सारे विचार व्यक्तिगत हैं.. अगर किसी की भावना को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ...

    PPS - इस पुरातत्ववेत्ता की पूरी diary को एक पुस्तक के वेश में पढने के मौके का इंतजार रहेगा..

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  17. deree se aane ke lie kshmapraathi hu...aapkee ye diary vaatav me kaabile taareef hai...

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  18. मुम्बई से कवि और हिमाचल मित्र के सम्पादक अनूप सेठीने यह टिपणी भेजी है "सचमुच ही वीभत्‍स वर्णन है लेकिन इतिहास की ऐसी कठिन यात्राएं हमें सभ्‍यता के विकास से परिचित भी करवाती हैं.
    यह पोसट पढ़वाने के लिए धन्‍यवाद."

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  19. itihaas...jo naa dikhaaye vo kam hotaa he..kher..jaankaari bahut achhi he..
    vese SHANTI manushya ke bas ki baat nahi he, ahinsaa..faaltu ki baat lagti he, prakruti me hi shaanti nahi he to ham tamaam jeev shaanti ki baat kese kar sakte he.., baharhaal..dhnyavaad esi jaankaariyo ke liye.

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  20. rakt beej bota tha aur bo raha insaan ,jurm ka gulaam ho raha insaan ,itihaas gawah hai ,sadiyon se chal rahi parapara aaj naye roop me hai ,bahut hi adbhut aur rongte khade kar dene wala lekh .

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  21. " bahut hi behtarin post ..aaapke dwara likhi gayi ye post ke liye aapko badhai ."

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  22. बहुत रोचक और रोमाँचित करने वाली पोस्ट है शुभकामनायें

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  23. बेहद रोमांचक और तथ्यपरक वर्णन

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  24. मुझे अफ़सोस है कि मैं अपने पसंदीदा विषय (पुरातत्व और समाज ) को अब तक नहीं पढ़ आया, पहली बार आपको पढ़ कर आनंद आ गया !
    शुभकामनायें !!

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  25. भ्यानक लेकिन रोचक वर्णन। धन्यवाद्

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  26. इतिहास जीवन्त हो उठा है मानो खुनी संघर्ष हमेशा ही रहे है।

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  27. इस अनूठे ब्लाग पर इतने दिनोस से कोई पोस्ट नहीं शरद जी , पुरातत्ववेत्ता को चाहने वाले को काहे निराश करते हो भाई !!

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  28. ग्लैडिएटर्स के बारे में आपने बहुत रोचक ढंग से जानकारी ही है। मैंने इनपर एक कहानी भी लिखी है।
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    रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
    मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?

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  29. yah kaisa khooni khel hai?...achchi jaankaari, badhhiya prastuti!

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  30. कृपया सिलसिला जारी रखें, रोचक और पठनीय.

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  31. शरद जी ,
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का सुअवसर मिला !पोस्ट पढ़कर मन द्रवित हो गया ! आज भी तो यही ख़ूनी खेल हर तरफ खेला जा रहा है बस उसका रूप बदल गया है ! मानवता आज भी सुबक रही है !
    इतनी अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  32. जान कर सच में ख़ुशी हुई कि आप हिंदी भाषा के उद्धार के लिए तत्पर हैं | आप को मेरी ढेरों शुभकामनाएं | मैं ख़ुद भी थोड़ी बहुत कविताएँ लिख लेता हूँ | हाल ही में अपनी किताब भी प्रकाशित की | आप मेरी कविताएँ यहाँ पर पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/

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