मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी-दसवां दिन –दो




ओलम्पिक ,कालभैरव और बजरंगबली
                आज ठंड कुछ बढ़ गई थी इसलिये भोजनोपरांत कहीं टहलने जाने की बजाय हम लोग तम्बू के सामने आग जलाकर बैठ गये । कुछ लकडियाँ हम भोजनशाला से ले आये कुछ आसपास से इकठ्ठा कर लीं । आर्य साहब ने कहा “ जो सबसे ज़्यादा लकड़ियाँ इकठ्ठा करेगा उसे मेडल प्रदान किया जायेगा । 
“ क्यों यहाँ ओलम्पिक हो रहा है क्या ? “
डॉ.वाकणकर ने अलाव के पास आते हुए आर्य साहब की घोषणा सुन ली थी । सर के लिये हमने बैठने की व्यवस्था की और इस बात के लिये उत्सुक हो गये कि आज कोई ज्ञानवर्धक बात सुनने को मिलेगी । अजय ने तुरंत उनकी बात के तारतम्य में प्रश्न उछाल दिया “ सर ये ओलम्पिक खेलों की शुरुआत तो ग्रीस से हुई है ना ? “ हाँ “ सर ने कहा । “ प्राचीन यूनान में उत्सव-पर्व आदि पर खेलकूद प्रतियोगितायें होती थीं । और सबसे मशहूर प्रतियोगिता यूनान के पेलोपोनेसस प्रांत में ओलम्पिया नामक स्थान पर होती थी । यहाँ ग्रीक देवता ओलिम्पी जियस का मन्दिर था जिसमें यूनानी मूर्तिकार फीडियस द्वारा निर्मित जियस की मूर्ति थी साथ ही इस मन्दिर के आसपास अन्य देवी देवताओं ,वीर पुरुषों और ओलम्पिक विजेताओं की भी अनेक मूर्तियाँ थी । यहाँ व्यायामशालायें भी थीं ।
                “ सर जी , उनका देवता तो जीयस था फिर ये ओलिम्पी जियस कोई अलग देवता था क्या ? “ अजय ने सवाल किया । “अरे नहीं रे बावड़े “ सर ने कहा । “ अपने यहाँ कैसे एक देवता के अलग अलग नाम होते हैं जैसे ..” वे आगे उदाहरण देने ही वाले थे कि राम मिलन ने तपाक से कहा “ जैसे बजरंग बली के नाम दक्षिणमुखी हनुमान , उत्तरमुखी हनुमान , मनोकामना हनुमान । “ 
                 “देखो ये बजरंगबली के भक्त ने बिलकुल सही बताया । अपने यहाँ उज्जैन में कैसे कालभैरव के नाम से  भेरू बाबा के कितने मन्दिर बन गये हैं । “आर्य साहब ने कहा ।
                 “ हाँ सर “ मैने कहा ।“ मैने भी देवास गेट पर एक उखाड़-पछाड़ भेरू बाबा का मन्दिर देखा है । कहते हैं कि जब भेरू बाबा नाराज़ हो जाते है तो तबाही मचा देते हैं ।.“ 
                  अशोक ने  कहा "सही है एक भगवान से किसीका मन नहीं भरता इसलिये सभीने अपने अपने भगवान बना लिये हैं , और उनके नाम पर अपने अपने धर्म बना लिये हैं ,और लड़ रहे हैं आपस में , मेरा भगवान बड़ा है , मेरा धर्म बड़ा है । और तो और एक धर्म के भीतर भी लड़ाईयाँ हो रही  हैं क्योंकि एक धर्म के भीतर भी कई उपधर्म है उनके अपने भगवान हैं , जिनके भगवान एक हैं उनके अनुयायियों में लड़ाइयाँ हो रही हैं .कि हम बड़े भक्त है । सबके अपने नियम हैं और वे अपने नियमों से दूसरों को भी संचालित करना चाहते हैं ।  
             " यहाँ तक तो ठीक है " किशोर ने कहा " लेकिन अपने धर्म को बड़ा और सही धर्म बताकर और अपने देवता को दूसरे के देवता से बड़ा बताकर जो वैमनस्यता फैलाई जाती है वह तो बिलकुल गलत है । "
             " इसका सिर्फ एक कारण है " मैने अपना ज्ञान बघारना शुरू किया " कि लोगों ने इतिहास को ठीक ढंग से पढ़ा ही नहीं है ,केवल सतही ज्ञान और अपने ग्रंथों के आधार पर डींग हाँकना कहाँ तक उचित है । " 
             "बिलकुल सही , ग्रंथ भी तो इसी उद्देश्य से लिखे गये , अशोक ने कहा , जैसे बौद्ध धर्म की महत्ता समाप्त करने के लिये मनुस्मृति रची गई । ग्रंथ लिखे जाने के बाद उनकी अपने अपने ढंग से व्याख्याएँ की गईं ।फिर किताबों को लेकर भी लोग लड़ने लगे ।  वैसे कुल मिलाकर यह धर्म है ही झगड़े की जड़ ।" 
            आर्य सर समझ गये कि बातचीत गम्भीर मोड़ की ओर जा रही है सो उन्होने इंटरप्ट किया , " भाई ये भेरू बाबा से तुम लोग कहाँ पहुंच गये ।फिर वे  ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे ,बोले “ भेरू से याद आया तुम लोगों से दो बैच पहले एक स्टुडेंट था भेरू मालवी नाम था उसका । एक दिन वो मेरे पास आया और रुआँसा होकर बोला “ सर मेरा नाम बहुत खराब है मुझे शर्म आती है , मै इसे बदलना चाहता हूँ ।“ तो मैने कहा “ अरे तुम्हारा नाम तो बहुत बढ़िया है भेरू याने भैरव ,कालभैरव ,शिव का नाम है यह । तुम्हारा नाम है भैरव मालवी देखो कितना सुन्दर लगता है । “ 
             हम समझ गये कि अब इस विषय पर गम्भीर  चर्चा नहीं हो सकती ।( चित्र गूगल से साभार )  
  

6 टिप्‍पणियां:

  1. शरद जी,
    आपकी पोस्ट की शुरुआत की दो-तीन लाइन पढ़ीं तो लगा अभी सोनी पर हाल में आए सीरियल जंगल जैसा ही कुछ तड़क-भड़क वाला मामला मिलेगा...लेकिन पोस्ट के अंदर तो जंगल नहीं ज्ञान का जखीरा मिला...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया हुआ बहस ख़त्म हो गयी वरना ऐसे बहस कभी ख़तम नही होते..जानकारी भरा चर्चा..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. गिरिजेश राव की टिप्पणी वाया शरद
    घर का नेट बन्द हो गया जिससे पोस्ट पर टिप्पणी नहीं कर पा रहा। इस मेल को ही टिप्पणी मानिए।

    इस ब्लॉग पर सहज सम्वाद के जो चित्र दिखते हैं, वे मुग्ध कर देते हैं। पहेलियों, विवादों और जाने क्या क्या के दौर में बहुत खामोशी से आप ब्लॉग पाठकों को संस्कारित कर रहे हैं। समस्या यह है कि इसे पाठक कम मिलते हैं। मैं इसके लिंक को अपने ब्लॉग के 'मेरा ब्लॉग चयन' पर शाम को डाल दूँगा
    (हुँ, ऐसे कह रहे हैं जैसे एहसान कर रहे हों या मेरे ब्लॉग पर पाठकों की झड़ी लगी हो ! ;))।

    जवाब देंहटाएं
  4. याद आया। उज्जैन तो महाकाल की नगरी है। कोतवाल हैं भेरूजी। रतलाम में कई भेरूलाल थे। हमारे कई प्वाइण्ट्समैन भेरू लाल थे। उन्हें भेरूलाल ए, भेरूलाल बी, भेरूलाल सी आदि से जाना जाता था!

    जवाब देंहटाएं
  5. शरद जी जरा इस वाक्य पर ध्यान दें मुझे कुछ संशय है
    जैसे बौद्ध धर्म की महत्ता समाप्त करने के लिये मनुस्मृति रची गई ।
    क्या मनु स्मृति बौद्ध धर्म के बाद रची गयी? अपने ग्यान को सही करने के लिये पूछ रही हूम्म बस। अभी एक भाग पर ही टिप्पणी दे रही हूँ कई दिन से बीमार हूँ इस लिये अधिक काम नहीं कर पा रही इसके बाद वली पोस्ट भी पढ ली पुस्तक रूप जरूर दें शुभकामनायें बहुत ग्यानवर्द्धक रचनायें हैं

    जवाब देंहटाएं
  6. aadarniya bhrata shri tippani hindi me kaise chhapegi pahle yah samjhaaiyega aur baki aapki soch wa prastutikaran ka jawab nahi.

    Ab doosar bhakha ma likhat hawn. Mahu la likhe padhe bar thorkin sikho dete.

    जवाब देंहटाएं