शाम
हो चुकी थी और हम लोग आज का कार्य समाप्त करने ही जा रहे थे कि डॉ.वाकणकर का आगमन
हुआ । “ कैसा लग रहा है दुष्टों ?” उन्होंने हमारे मुरझाये चेहरों की ओर देखकर
पूछा । हमने उन्हें अपनी उपलब्धियों और असफलताओं से अवगत कराया । सर अवशेषों के
करीब बैठ गए और उनका निरीक्षण करते हुए बोले “असफलताओं को छोड़ो, हम उपलब्धियों पर
बात करते हैं । यह जो अलग अलग कालखंड के मिश्रित रूप में अवशेष यहाँ मिल रहे हैं
इनसे यह तो तय होता है कि यहाँ मिश्रित संस्कृति रही होगी । कई बार ऐसा होता है कि
किसी एक सतह से किसी एक संस्कृति के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते । सो उतनी चिंता की
बात नहीं ।"
फिर उठते हुए उन्होंने कहा "ठीक है, चलो,अब हम इन अवशेषों को लेकर
शिविर में चलते हैं । अब हम सबसे पहले इन प्राप्त अवशेषों को तम्बू में ले जाकर
साफ करेंगे फिर यह किस स्थिति में, किस लेयर में, कितनी गहराई में मिले, इनके साथ
और कौन - कौन सी वस्तुएं मिलीं आदि जानकारी का टैग लगाकर इन्हें सावधानी पूर्वक
सीलबन्द करेंगे । इसलिए तुम लोगों को भी यह नाप- वाप ध्यान में रखना है । यह सब
कॉपी में नोट करते हो या नहीं ? “ “हाँ सर, आर्य सर ने बताया था सो हमने कॉपी में यह
सब विवरण दर्ज कर लिया है । ” रवीन्द्र ने
कहा । " वेरी गुड ,अब चलो " सर ने कहा ।
हम लोग तमाम अवशेष ,अपनी वही और औज़ार
उठाकर सर के तम्बू में आ गए । सर ने वहाँ रखे ब्रश उठाये और अवशेषों से धूल हटाने
लगे । एक मनके को फूँक से साफ़ करते हुए देख
कर अजय ने सवाल किया “ सर इन्हें साफ़ कर सीलबंद कर और टैग लगाकर तो हम रख देंगे लेकिन
इसके बाद इन अवशेषों का क्या होगा ? सर ने कहा “ अरे, इतनी सी बात तुम्हें नहीं
मालूम, इसके बाद उत्खनन की रिपोर्ट लिखते समय इस सामग्री की और इस विवरण की ज़रूरत
होती है ना ।"
वैसे तो हम यह सब कोर्स में पढ चुके हैं
, लेकिन डॉ.वाकणकर जैसे विद्वान के मुँह से यह सब सुनना हमें अच्छा लगता है । इसलिए
उनकी डांट खाकर भी हम उनके सामने बार बार अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत करते हैं । हमें
ज्ञात है कि उनका ज्ञान अपार है और जहाँ वे विश्व इतिहास की पहेलियों के उत्तर सरलता पूर्वक दे देते हैं वहीं 'जंगल
में अगर आपकी साइकल पंक्चर हो जाए तो ट्यूब में बारीक धूल डालकर हवा भर देने से
कैसे पंक्चर की दुकान तक साईकल चल सकती है', जैसे फार्मूले भी उनके पास हैं । वे अच्छे चित्रकार भी हैं और नक्षत्र विज्ञान
के अलावा जड़ी-बूटियों की भी जानकारी रखते
हैं ।
सर भी हमारे सवालों का मज़ा ले रहे थे ।
मैंने अगला सवाल किया “ लेकिन सर इतनी सामग्री भर से क्या इस जगह का इतिहास लिखा
जाएगा ?” यह साधारण सा सवाल सुनकर किंचित रोश के साथ बोले “ अरे पागलों, दो साल से
क्या पढ़ रहे हो ? इतिहास लिखने के लिए इसके सपोर्ट में और भी वस्तुएं चाहिये, यहाँ
प्रचलित साहित्य,लोक मान्यताएं, निकटस्थ स्थानों पर प्राप्त सामग्री, आसपास हुए
उत्खननों की रिपोर्ट आदि । सब मिलाकर इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता कई दिनों तक शोध
करते हैं तब कहीं इतिहास तय होता है ।तुम लोग भी जब गाँव जाते हो तो यहाँ प्रचलित
मान्यताओं के बारे में ग्रामवासियों से बात किया करो ।"
“लेकिन सर जी, ई सब इतिहास-फितिहास
लिखा जाने के बाद ई सब कचरा का करेंगे ,वापस गाड़ देंगे का ? “ राममिलन के इस सवाल
पर सर ज़ोर से हँस पड़े । जिस बात को हम लोग स्पष्ट पूछने से डर रहे थे राममिलन ने
अपने अंदाज़ में पूछ ही लिया । सर उसका आशय समझकर मज़ाक में बोले “ क्या करेंगे
पंडित , इन पर सिन्दूर लगाकर सब तुमरे यहाँ इलाहाबाद में गंगा मैया में विसर्जित
कर देंगे और क्या । “ सर की विनोद बुद्धि पर हम लोग भी हँस पड़े ।
लेकिन किशोर कहाँ चुप रहने वाले थे ।
उन्हें तो पंडित राममिलन को छेड़ने का मौका
चाहिये था । बोले ” अरे पंडत, ई सब तोहरे इलाहाबाद के मूजियम में रख देंगे और
तोहका म्यूजियम क्यूरेटर बना देंगे ।‘ हम लोग हँस पड़े लेकिन राम मिलन नाराज़ हो गए
…“ किशोरवा, तुम तो चुपई रहो , हम तुमसे बात नाही कर रहे, हम तो सर से पूछ रहे हैं ।“ लेकिन सर तो इतनी देर में हम लोगों
को हँसता छोड़ तम्बू से बाहर निकल चुके थे ।
हम समझ गए कि आज रात तक किशोर और राम मिलन के बीच ऐसी ही नोक- झोंक चलती रहेगी ।
हम भी आप की ही तरह सोचते हैं। लेकिन उससे क्या होने वाला है?
जवाब देंहटाएंमुलाहजा फरमाएँ, अर्ज किया है:
"जिन्दों की कोई कीमत नहीं यहाँ,
आप तो कब्रों की बात करते हैं ।"
वाह ! वाह!! सुभानअल्ला ।
चर्चा जारी रखिए। हम भी आप ही से सीखें हैं कि कैसे ऐसी जगह "...जारी" लिखो कि पब्लिक ऐंठ कर रह जाय ।
बढियां चर्चा और अतीत उत्खनन
जवाब देंहटाएंसंग्रहालय तो और होने चाहिए। उन्हीं की बदौलत तो हम अपने पूर्वजों से मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंRochak charchaa.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )