किस्सा यह है कि उज्जैन के पास दंगवाड़ा में विक्रम विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व के स्नातकोत्तर के छात्र उत्खनन शिविर में आए हुए हैं और कार्य समाप्ति के पश्चात तम्बू में बैठकर गपशप कर रहे हैं । शरद कोकास सुना रहे हैं अपने मित्रों को अपनी अजंता यात्रा का वर्णन । छात्रों से भरी बस अजंता की गुफाओं के द्वार तक पहुँच चुकी है । अब पढ़िये इससे आगे ...
मैंने चारों ओर नज़रें इस तरह घुमाकर फेंकीं जैसे कोई मछुआरा अपना जाल घुमाकर फेंकता है । मुझे उन गुफाओं की तलाश थी जिनके बारे में मैं बचपन से सुनता चला आया था । पूछने पर ज्ञात हुआ कि उन गुफाओं तक पहुँचने के लिए पहले सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी । उसके बाद उन गुफाओं का संसार प्रारम्भ होगा जो आज पूरी दुनिया में मशहूर हैं । सीढ़ियों पर चढ़कर हम लोगों ने टिकट खरीदे और प्रवेश द्वार से भीतर प्रवेश किया ।
मैं मन ही मन हँसा । कितना मूर्ख हूँ मैं ,जो सोच रहा था कि यह गुफायें अब भी ढाई हज़ार साल पहले की स्थिति में होंगी । इन गुफाओं की खोज हुए भी जाने कितना समय बीत चुका है और अब तो यह बाकायदा एक टूरिस्ट सेन्टर बन चुका है । इस बात का हमें भान था कि हम लोग यहाँ टूरिस्ट की तरह नहीं बल्कि अध्ययनकर्ता की तरह आए हैं और हमे उसी तन्मयता के साथ इन गुफाओं का अवलोकन करना है जिस तन्मयता के साथ कलाकारों ने इन गुफाओं में चित्र उकेरे होंगे ।
सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरांत हमें सबसे पहली गुफा जो मिली उसे पुरातत्व विभाग ने गुफा क्रमांक एक नाम दिया है । उसके बाद क्रम से गुफा क्रमांक दो , तीन ,चार आदि हैं । इस क्रम का इन गुफाओं के निर्माण काल से कोई सम्बन्ध नहीं है । वास्तव में सबसे पहले जो गुफा बनी थी वह क्रमांक दस है । इसके बाद इस गुफा के दोनों ओर क्रमश: गुफाएँ कटती चली गईं हैं ।
अजंता की यह गुफाएँ मनुष्य द्वारा निर्मित वे बेजोड़ गुफाएँ हैं जिन पर भारत को गर्व है । देश विदेश से आए सैलानी इन्हे देख आश्चर्य चकित हो उठते हैं । अहा ! इतना अद्भुत सौंदर्य ! इन गुफाओं में चित्रकला व शिल्प कला के बेजोड़ नमूने हैं । इनकी किसीसे तुलना नहीं हो सकती । बुद्धि व श्रम के संयोग से निर्मित इन गुफाओं को देख कर आधुनिक तकनीक भी हैरान है । प्राकृतिक रंगों के निर्माण व उपयोग के बारे में उस युग के मनुष्य की समझ व ज्ञान को देख कर ऐसा नहीं लगता कि वह मनुष्य कला के प्रति उस मनुष्य का सौन्दर्यबोध किसी भी तरह कम रहा होगा । इन गुफाओं के निर्माण का उद्देश्य भी स्पष्ट है । इक्कीस सौ वर्ष पूर्व जब बौद्ध धर्म अपने चरम पर था , लाखों की तादाद में बौद्ध भिक्षु दीक्षा ले रहे थे और उन्हे अपनी साधना के लिए किसी एकांत की आवश्यकता थी । इसी आवश्यकता ने इन गुफाओं को जन्म दिया ।
( सभी चित्र गूगल से साभार )