सोमवार, 8 जून 2009

एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी -दूसरा दिन-छः


प्र
मैंने बात आगे बढ़ाई “ लेकिन तीसरी सहस्त्राब्दि  ईसा पूर्व तक मेसोपोटेमिया के  इन लोगों ने अनेक कठिनाइयों पर विजय पा ली थी । दलदल सुखाने और सिंचाई के लिए  यहाँ नहरें खोदी गईं, खेतों में गेहूँ और जौ की फसलें उगाई जाने लगीं । कृषकों ने हल का अविष्कार भी कर लिया था । खजूर यहाँ बहुतायत में होता था जिसके फलों से आटा व गुड़ तैयार किया जाता था । पेड़ की छाल के रेशों से रस्सी बुनी जाती थी ,चरागाहों में घुंघराले बालों वाली भेड़ें नर्म नर्म घास चरती थीं । नगरों में शिल्पी, बढ़ई आदि कारीगर रहा करते थे और ऊन, खजूर, अनाज आदि का व्यापार भी अच्छा था । “

            "यार अब समझ में आया कि अरब देशों के लोग खजूर को इतना पसंद क्यों करते हैं ।" अजय ने कहा "और यह भी समझ में आ गया कि मुसलमान लोग रमज़ान के महीने में रोजा खोलने के लिए खजूर का इस्तेमाल क्यों करते हैं । "हाँ यह सही है ।" मैंने कहा "जिस क्षेत्र में किसी धर्म का उदय होता है उस क्षेत्र का खान-पान, रीति रिवाज़, रहन - सहन सब कुछ उस धर्म में शामिल हो जाता है ,फिर उस धर्म के लोग दुनिया के किसी भी क्षेत्र में रहें वे उन्ही रीति -रिवाजों का पालन करते हैं । लेकिन यह बात जो मैं बता रहा हूँ यह इस्लाम के अविर्भाव से हजारों साल पहले की है ।"

            “मतलब यह कि मेसोपोटेमिया वासियों को सुखी होने में तीन-चार हज़ार साल लग गए  ? ” रवीन्द्र ने मेरी बात को फ़िर से पटरी पर लाते हुए कहा । “हाँ” मैंने बताया, "लेकिन इस तरह सुखी होने की प्रक्रिया में कुछ लोग तो सम्पन्न हो गए और शेष वैसे ही विपन्न रहे । दरअसल अधिकता ही इस भेद को जन्म देती है । उस समय दक्षिण मेसोपोटामिया की उर्वर ज़मीन में एक दाने से सौ दाने पैदा होते थे और खजूर का एक पेड़ वर्ष में पचास  किलो से भी अधिक खजूर देता था । इसका अर्थ यह हुआ कि उन लोगों के पास आवश्यकता से अधिक अन्न हो गया लेकिन इसके मालिक सब नहीं हुए ।"

            "हमारे यहाँ भी तो यही हाल है भाई " अशोक ने कहा । "हमारे यहाँ भी किसान इतना अनाज पैदा करता है लेकिन सब बड़े बड़े लोगों के गोदामों में जमा हो जाता है किसान के पास तो बमुश्किल अपने खाने लायक अनाज बचा रहता है ।" " तुम ठीक कह रहे हो " मैंने कहा " लेकिन इसकी वज़ह से यह हुआ कि कुछ संभ्रांत और पुरोहित किस्म के लोगों ने ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया और शेष लोग जिनमें  युद्धबंदी भी थे उनके दास हो गए । गरीबों के पास अपनी भूमि नहीं थी वे ज़मींदारों के यहाँ काम करने लगे  । इस तरह दक्षिण मेसोपोटामिया में कृषि, पशुपालन और शिल्प का विकास तो हुआ ही साथ साथ  दासों , सामुदायिक किसानों और संपन्न दास स्वामियों के वर्ग भी बन गए । बहुत से शिल्पी और किसान धनी लोगों के कर्जदार बनते गए ।"

            "मतलब यह सिर्फ हमारे देश में ही नहीं हो रहा बल्कि पूरी दुनिया में सदियों से चला आ रहा है ।" अशोक ने कहा और रज़ाई के भीतर मुँह घुसा लिया । मैंने देखा कि सबको नींद सी आ रही है । अशोक की बात ख़त्म होते ही रवींद्र ने आज की रात्रिकालीन सभा की समाप्ति की घोषणा करते हुए पहला फरमान जारी किया .."अभी भी कहाँ कुछ बदला है न बदलने वाला है चलो अब सब लोग सो जाओ ।"

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7  -  जल से ढँकी हुई थी पृथ्वी

            रवींद्र के फ़रमान के बावज़ूद किसीको नींद नहीं आ रही थी । दरअसल ठण्ड कुछ बढ़ गई थी और हम लोग हल्की हल्की कंपकंपाहट महसूस कर रहे थे । हर कोई थोड़ी थोड़ी देर में रजाई से मुँह बाहर निकालता था और देखता था कि कौन कौन हिल-डुल रहा है ।"कितना अच्छा हो खजूर के गुड़ और अदरक वाली एक कप गरमागरम चाय मिल जाए ।" अजय ने एक असंभव सी इच्छा प्रकट की । "चुप रह ।" रवीन्द्र ने उसे डाँटते हुए कहा "चाय की कल्पना भी नहीं करना, भाटी जी चूल्हा बुझाकर कबके सो चुके होंगे और अब भगवान भी आ जाएँ तो वे नहीं जागने वाले ।" "ठीक है यार, हम भी ठण्ड भगाने के लिए अशोक की चुंगी से एक सुट्टा मार लेंगे ।" अजय ने कहा ।

            अचानक अशोक को ख़याल आया कि उसने बहुत देर से सिगरेट नहीं पी है ।"सुलगाऊं क्या ?" उसने अजय से पूछा  और बिना उसके जवाब की राह देखे अपने बिस्तर के नीचे छुपाकर रखे पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर जला ली । सिगरेट जलाकर उसने ढेर सारा धुआं तम्बू की छत की ओर फेंका और दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर डमरू की तरह एक विशिष्ट स्टाइल में मटकाते हुए  कहा " जोसी .. ठण्ड वंड कुछ पास न आवै जब हम अपनी सिगरेट सुलगावें।"  “ अजय ने अपनी नाक के सामने आया धुआँ हटाने का अभिनय करते हुए कहा "ठीक है भैया, तुम्हारे द्वारा फैलाये हुए प्रदूषण से ही ठण्ड भाग जाए और नींद आ जाये तो कितना अच्छा हो ।"

            नींद न आने तक बातचीत करना हमारी विवशता ही नहीं ज़रूरत भी थी इसलिए कि ठण्ड की दुश्मनी नींद से थी और वह इस कदर हावी थी कि अपने अलावा कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी । अजय ने मेरी ओर मुखातिब होकर कहा  “ कामरेड, तुम यह जो वर्ग - संघर्ष की कथा सुना रहे थे इसे बाद में सुनाना पहले यह बताओ कि क्या प्रलय की मूल कथा भी यहीं की है ? ऐसा मैंने सुना है ।" “हाँ ।” मैंने कहा “ यह बात सही है । उस समय मेसोपोटामिया के इस क्षेत्र में बार बार बाढ़ आया करती थी, कभी कभी तो बाढ़ की वज़ह से यहाँ की दोनों नदियाँ दज़ला और फ़रात आपस में मिल जाती थीं और प्रलय जैसी स्थिति हो जाती थी, शायद उसी के चलते यहाँ इस कथा ने जन्म लिया हो । कथा कुछ ऐसी है कि..." मैंने देखा अचानक अजय की रज़ाई में एक जलजला सा आ रहा है l

            "अरे सुनो, सुनो " अजय ने रजाई फेंकी और सीधा होकर बैठ गया .. "भाई कहानी सुना रहा है ।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा .." सुनाता हूँ, लेकिन वादा करो कि बीच में टोकोगे नहीं । और ढंग से रज़ाई ओढ़कर बैठो नहीं तो वाकणकर सर को बता दूँगा कि यह जानबूझकर आत्महत्या का प्रयास कर रहा था ।" अजय ने अपने चारों और ठीक से रज़ाई लपेट ली और मुँह पर उंगली रख कर अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप बैठ गया 

            मैंने प्रलय की कथा शुरू की .."माइथोलॉजी में ऐसी मान्यता है कि शुरुआत में यह समूची पृथ्वी जल से ढँकी हुई थी और सब ओर सिर्फ जल ही जल था । आसमान से भी ऊपर एक देवलोक था जहाँ देवता रहते थे और पृथ्वी को जल में डूबा हुआ देखकर बहुत अफ़सोस किया करते थे । देवताओं का प्रयास था कि पृथ्वी को किसी तरह जल से अलग किया जाए ताकि इस पर मनुष्यों को बसाया जा सके, लेकिन एक दैत्य उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था । उसे समाप्त किये बगैर कोई चारा नहीं था । सो देवताओं ने उससे युद्ध किया जिसमें देवाधिपति द्वारा वह दैत्य  मार दिया गया l फिर देवताओं ने उस दैत्य के मृत शरीर के दो टुकड़े कर दिए,  फिर देह के ऊपरी  भाग से आकाश व तारों का निर्माण किया और निचले भाग से ज़मीन का । फिर उन्होंने ज़मीन पर पेड़ पौधे उगाए , मिटटी से इंसान और जानवर बनाये और उन्हें इस धरती पर बसाया  । “

            “लेकिन यह तो कोरी कल्पना है भाई, बृह्मांड,तारे, पृथ्वी और मनुष्य इस तरह तो नहीं बने थे ।“ अजय ने कहा । “ लो तुमने टोक दिया न, अरे भाई मैंने कब कहा कि ऐसा सचमुच में घटित हुआ था । मैंने पहले ही कहा था कि यह कहानी है, पृथ्वी और मनुष्य के जन्म को लेकर हमारे यहाँ भी इस तरह की कितनी ही कहानियाँ हैं । उस समय मनुष्य के पास जितना ज्ञान था उस आधार पर उसने यह कथायें रचीं । कुछ कल्पनायें आगे जाकर सत्य साबित हो गईं और कुछ कल्पनाएँ ही रह गईं । जैसे कि आज से चार सौ साल पहले तक यही सत्य था कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य उसकी परिक्रमा करता है । अगर गेलेलियो और ब्रूनो जैसे वैज्ञानिक नहीं होते तो आज भी यही सत्य माना जाता । “ रवीन्द्र ने कहा “ नहीं, ये लोग नहीं होते तो कोई और होता लेकिन सच तो एक न एक दिन सामने आता ही है । खैर, तुम आगे की कहानी सुनाओ ।"

            “ज़रूर..” मैंने कहा ।“ अब देवताओं की बसाई पृथ्वी पर सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, मनुष्य झोपड़ियाँ बनाकर रह रहे थे और अपना भरण-पोषण कर रहे थे कि अचानक किसी बात पर देवता मनुष्य से नाराज़ हो गए, उन्होंने तय किया कि मनुष्यों की इस पृथ्वी को फिर से पानी में डुबो दिया जाए ।" "भैया हमें पता है, देवता किस बात से नाराज़ हुए होंगे ।" राममिलन भैया ने तुरंत हमारी कहानी में ब्रेक लगाते हुए कहा " ई इंसान तो सुरु से ही पापी रहा है, जैसे तुम लोग देवी-देवताओं को नहीं पूजते वैसे ही उसने भी देवी देवताओं को पूजना बंद कर दिया होगा, अब नाराज़ नहीं होंगे तो क्या ।"

            " ठीक कह रहे हो भैया" मैंने कहा " सारी ग़लती तो मनुष्यों से ही होती है देवता भी कभी कोई ग़लती करते हैं मेसोपोटामिया में भी ऐसा ही हुआ ।  असीरियों के देवता एंलिल ने मनुष्यों के पाप की वज़ह से ही ऐसा किया था, खैर, देवताओं की नाराज़गी के कारणों पर हम बाद में शोध करेंगे, आगे सुनो कि क्या हुआ ।" मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा " हुआ यह कि अन्य देवताओं की नाराज़गी के बावजूद  जल देवता इया मनुष्यों पर प्रसन्न थे सो उन्होंने यह खबर लीक कर दी ।

            "पक्की बात है " राममिलन भैया ने कहा " बे लोग जल देवता को ही जल चढाते होंगे।" "भाई कहानी सुनना है कि नहीं ?" मैंने किंचित रोष के साथ कहा .. "हाँ हाँ सुनाओ सुनाओ .." राममिलन भैया ने कहा ।मैंने कहानी आगे बढ़ाई  " तो हुआ यह कि उन्होंने यह बात सरकंडों को बता दी कि देवता फिर से इस पृथ्वी को पानी में डुबोने वाले हैं । उस समय झोपड़ियाँ सरकंडों की बनी होती थीं सो  सरकंडों ने यह बात झोपडी के मालिक ज़िउसुद्दू को बता दी । फिर क्या था, इससे पहले कि प्रलय हो झोपड़ी के मालिक यानि उस मनुष्य ने एक बड़ी सी नाव बनाई, उसमें अपने परिवार को, कुछ शिल्पकारों को व पशु पक्षियों के जोड़ों को बिठा लिया । फिर तयशुदा दिन खूब बरसात हुई, नाव में बैठे लोगों के अलावा सारे लोग डूब गए । फिर एक दिन बारिश थम गई । बारिश थमने पर सबसे पहले नाव से कौवे को भेजा गया कि वह पता लगाये कहाँ पर सूखी ज़मीन है सो कौवा उड़ा, उसने सूखी ज़मीन का पता लगाया वहाँ सारे लोग उतर गए और धरती पर बस गए । फिर उनकी संतानें हुईं और इस तरह दुनिया आगे बढ़ी । “

“ यार यह कहानी तो हर धर्म में है जैसे हमारे यहाँ मनु की नाव है, इस्लाम और क्रिश्चेनिटी में नूह  या नोहा की नाव है ? “ अजय ने कहा । “ बिलकुल । “ मैंने जवाब दिया । “ ऐसा माना जाता है कि मेसोपोटामिया से ही यह कथा पूरी दुनिया में पहुँची । दज़ला फ़रात के दोआब में स्थित निनेवे नगर में ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता लेयार्ड ने उत्खनन किया था वहाँ लगभग साढ़े चार हज़ार साल पहले की ईटों पर कीलाक्षरी लिपि में लिखी यह कहानी मिली बाद में गिलगमेश नामक महाकाव्य भी मिला जो लगभग तीन सौ पट्टिकाओं पर लिखा हुआ था जिसमे यह पूरी कहानी थी । फिर सन सत्ताईस अठ्ठाइस में ब्रिटेन और अमेरिका के तत्वावधान में पुराविद लियोनार्ड वूली ने सुमेर सभ्यता के अनेक नगर खोज निकाले जिनसे इस कहानी की ऐतिहासिकता की पुष्टि हुई । बाद में अन्य धर्मों में यह कथा आई । इसी से प्रेरित होकर, देवी-देवताओं का भय दिखाकर पुरोहितों ने लोगों को डराया धमकाया, यदि वे देवताओं की बात नहीं मानेंगे तो फिर एक दिन प्रलय होगा । इसके अलावा भी देवी देवताओं के नाम पर,पूजा-पाठ के नाम पर, व्रत-उपवास के नाम पर, दान- दक्षिणा के नाम पर  मनुष्य को डराने के लिए बहुत सी कथाएं रची गईं । “

“लेकिन मैं फिर कह रहा हूँ यह इतिहास नहीं है ऐसा कभी हुआ ही नहीं ।“ अजय तर्क के मूड में था । “ हाँ ठीक है तुम्हारा कहना ।” मैंने कहा “यह इतिहास नहीं है, मैंने कहा तो कि उस दौरान वहाँ भीषण बाढ़ आई थी जिसका प्रमाण खुदाई में मिली मिटटी और गाद है जिसकी वज़ह से ऐसी कहानियाँ रची गई । और ऐसा केवल मेसोपोटामिया में नहीं हुआ बल्कि पूरी दुनिया में हुआ ।लेकिन अफसोस यही है कि पढ़े-लिखे लोग भी पुराणकथाओं को इतिहास मान लेते हैं । वे जीवन भर इस बात को सिद्ध करने में लगे रहते हैं कि किसी काल में ऐसा ऐसा हुआ होगा । वे जानना ही नहीं चाहते कि यह कथाएँ देवताओं पर मनुष्य का विश्वास जगाने या इस आधार पर कुछ मनुष्यों द्वारा शेष मनुष्यों पर शासन करने के लिए रची गईं थीं । इसीलिए  इतिहासकारों का काम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे आम लोगों को इतिहास की वास्तविकता बतायें और बतायें कि इतिहास और कहानी में क्या फर्क है । वरना लोग झूठ को ही हमेशा सच समझते रहेंगे । गोयबल्स की मशहूर उक्ति है, झूठ को सौ बार दोहराओ तो वह सच हो जाता है ।”

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिलचस्प शरद भाई। मेरा प्रिय विषय है और इसे ही मैं पढ़ नहीं पा रहा हूं। याद रखें, मोरपंख से बुकमार्क किया है इसे मैने:)
    कल कई दिनों बाद शायद साप्ताहिक अवकाश मिले। प्रिंट निकाल कर पढ़ता हूं।

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  2. मुझे तो हजारी प्रसाद द्विवेदी की शैली का आभास हो रहा है। बहुत बढ़िया । कथा की धीमी प्रगति के कारण उतावलापन जरूर छ्लक रहा है।

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