खाना
खाकर जब हम लोग अपने तम्बू में पहुँचे तो पता चला कि बिस्तर अभी तक नम हैं । हालाँकि
फुलान जाने से पहले हम उन्हें डंडा-वंडा
लगाकर टांग गए थे ताकि रात में सोने तक वे सूख जाएँ । “ चलो कोई बात नहीं शरीर की गर्मी से सूख
जाएँगे। ” मैंने कहा । लेकिन बिस्तर में घुसने पर पता चला कि नमी के अलावा यहाँ
ठंड का भी सामना करना है । गनीमत की थकान हम पर हावी थी और ठण्ड मेहनत से थके हुए
शरीर को नींद में जाने से रोक नहीं सकती थी ।
सोने से पहले एक बार दिन भर की
गतिविधियों की चर्चा भी ज़रूरी थी सो हमने आज प्राप्त प्रतिमाओं से अपनी बात शुरू
की । “क्यों यार कुषाण पीरियड से पहले अपने यहाँ मूर्तिशिल्प का कोई कंसेप्ट नहीं
था क्या ? “ अजय ने पूछा । रवीन्द्र ने बताया “ था तो लेकिन उसका कोई संगठित रूप
नहीं था, वह अपने अनगढ़ रूप में ही था, अगर ऐसा होता तो बुद्ध के जीवन काल में ही
उनकी मूर्तियाँ बन जाती, वह तो बुद्ध के दो-तीन सौ साल बाद पश्चिमोत्तर से कलाकार
आए और उन्होंने जनश्रुतियों के आधार पर
मूर्तियाँ गढ़ीं ।“
“श्रुति के आधार पर मतलब? ” अजय ने पूछा
। “मतलब उन्होंने बुद्ध को देखा तो नहीं था सो लोगों से पूछा, बुद्ध कैसे दिखते
थे, तो लोगों ने भी अपने पूर्वजों से सुनी हुई बातों के आधार पर बताया कि बुद्ध का
शरीर विशाल था , उनका रूप भव्य था, और ऐसा लगता था जैसे उनके पीछे कोई प्रभामंडल
हो । बस वैसी ही मूर्तियाँ शिल्पकारों ने गढ़ीं जबकी वास्तव में बुद्ध तो तपस्या के
कारण कृशकाय हो गए थे । हालाँकि बाद में
वैसी मूर्तियाँ भी बनीं जिनमे तपस्या के बाद बुद्ध की पसलियाँ भी दिखाई देती थीं ।“
रवीन्द्र ने कहा ।
"भाई हमारे देश में तो लोगों को
पूजा से मतलब है, प्रतिमा का सौन्दर्य कौन गंभीरता से देखता है । सारे देवी -देवता
केवल आस्था के कारण पूजे जाते हैं, न कि अन्य कारणों से, वह तो हम लोग हैं प्रतिमा
विज्ञान के छात्र और थोड़ी बहुत कला की सेन्स हमें है सो हम मूर्ति की सुन्दरता भी
देखते हैं । “ मैंने कहा । अजय ने कहा .."प्रतिमा के लक्षणों को और उसकी
सुन्दरता को आस्तिक लोगों से ज़्यादा नास्तिक लोग देखते हैं । " मैंने कहा “
यहाँ आस्तिक- नास्तिक जैसी कोई बात नहीं है भाई..लोगों की आस्था है चाहे जिसे
पूजें, पर लानत है हम प्रतिमा विज्ञान पढ़ने वाले छात्रों पर जो प्रतिमा के शिल्प
सम्बन्धी यह ज्ञान लोगों तक पहुँचा नहीं सकें ।"
रवीन्द्र ने कहा "अब जनता को ही
मूर्तियों के लक्षण जानने में रूचि नहीं है तो हम क्या करें ? " " खैर ऐसा
भी नहीं है, लेकिन इस देश की जनता के सौन्दर्यबोध के बारे में क्या कहें .." मैंने रवीन्द्र के दर्द पर मरहम
लगाते हुए कहा " आस्था का यह आलम है
कि लोग पत्थर पर सिन्दूर पोतकर भी उसे हनुमान जी बना देते हैं ।“ “ और फिर यही लोग
इस बहाने सरकारी जमीन पर बेजा कब्जा कर लेते हैं । “ अशोक ने अपना एक्सपर्ट कमेंट
दिया और तानकर सो गया । हम लोगों ने भी अपने रज़ाई कम्बल ताने और ‘बजरंग बली की जय'
कहकर उनके भीतर घुस गए ।
कथा का पहला पड़ाव? शंख ध्वनि करें? बजरंग बली की जय।
जवाब देंहटाएंRochak jaankari, aabhaar.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
vaise to yam ki pooja kahin nahee hoti hai par kisi purush ko mata ke roop men poojne ka pahla maamla dekha hai. Dilchsap
जवाब देंहटाएंरोचक वृ्तान्त्!!!!!
जवाब देंहटाएंI am very impressed to your's blog which contains very very valuable contents on our history, I have learned from it and people should............
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