10 - बैल नहीं भैया टेराकोटा
सूरज की
नींद ज़रा देर से खुली थी और वह अभी तक उबासियाँ ले रहा था । ऐसा लगता था जैसे वह
भी कल रात देर तक जागा हो । हम लोग तो सूरज के जाग जाने के बाद जागने वालों की
जमात में शामिल थे और अक्सर सपनों में ही सूर्योदय देखा करते थे सो सूरज के तकाज़े
से बेखबर अपने तम्बू में तानकर सो रहे थे कि अचानक डॉ.वाकणकर की आवाज़ सुनाई दी ..
“सज्जनों जाग जाओ, आज अपने को नदी के
उस पार वाले टीले पर एक्सप्लोरेशन के लिए चलना है ।" तम्बू के बाहर से ही उन्होंने आज का प्रोग्राम बताया और चले गए ।
“ अभी तो सात ही बजा है यार ।" अशोक ने खीझकर कहा । मैंने कहा .."कोई
नहीं, सर का आदेश यानि आदेश, वे तो नहा-धोकर तैयार भी हो गए हैं । " मजबूरी
में हम लोगों को भी उठना पड़ा । प्रतिदिन कि भांति फिर हम लोगों ने चम्बल के किनारे
जाकर प्रक्षालन किया और नाश्ता कर जल्दी से तैयार हो गए ।
नाश्ते के पश्चात शरीर में काफी उर्जा
का संचार हो चुका था सो सर के साथ हम लोगों ने पैदल चलना शुरू कर दिया । सर ने
बताया कि नदी के उस किनारे वाला वह टीला यहाँ से लगभग दो-ढाई किलोमीटर पर ही स्थित
है । हम लोग गपियाते हुए और टहलते हुए टीले पर पहुँच गए । सर हमें एक ऐसे मार्ग से ले गए जहाँ पानी बहुत
कम था और हमें नदी पार करने में कोई दिक्कत नहीं हुई । यह टीला अधिक ऊँचा नहीं था
और पानी की धार के बहुत करीब था ।
सर ने हमें पहले तो एक्सप्लोरेशन का
अर्थ और उद्देश्य बताया "
एक्सप्लोरेशन एक तरह से सर्वे का काम होता है । कल मैंने तुम लोगों को बताया था कि
सबसे पहले किसी भी पुरातात्विक साईट के बारे में सूचना प्राप्त होती है और उसे
चिन्हित किया जाता है । तत्पश्चात इस
चिन्हित साईट पर उत्खनन कार्य प्रारंभ करने से पूर्व वहाँ सर्वे किया जाता है । इस
आधार पर यह तय किया जाता है कि वहाँ किस प्रकार के अवशेष प्राप्त हो सकते हैं तथा
किस स्थान से खुदाई प्रारंभ करना उचित होगा ।
यह प्रारंभिक जानकारी देने के पश्चात
सर ने आदेश दिया " अब तुम लोग नीचे झुक झुक कर ध्यान से देखो, यहाँ ज़मीन पर
ताम्राश्म युगीन सभ्यता के बहुत सारे अवशेष बिखरे हुए हैं । " हमें समझ में नहीं आया कि सर हमें
प्राचीन अवशेषों की खोज के लिए वहाँ क्यों लेकर आए हैं इसलिए कि पत्थरों और मिटटी
के बीच बड़ी मुश्किल से वहाँ सतह पर कोई अवशेष दिखाई देता था । बहुत देर तक खोजने
के बाद आखिर एक जगह ताम्राश्मयुगीन सभ्यता के कुछ चित्रित मृद्भांड, दो सिक्के और
दो बीड मिले ।
अजय ने सर से कहा “ यहाँ ज़्यादा कुछ
तो मिल नहीं रहा है सर, फिर…? दरअसल
वह कहना चाहता था कि यहाँ कुछ ख़ास नहीं
मिल रहा ही फिर सर हमें यहाँ लेकर क्यों आये हैं । “ सर उसका आशय समझ गए । “ क्यों
, ज़्यादा कुछ मिलना ज़रूरी है क्या ? ऐसा कई बार होता है कि एक्सप्लोरेशन के दौरान
दिन दिन भर कुछ नहीं मिलता, लेकिन क्या पता, ऊपर से कुछ न दिखाई दे लेकिन इस धरती
के नीचे पूरी दुनिया बसी हो ।“
सर इस बात को समझ रहे थे कि यह काम हम
लोगों के लिए बहुत उबाऊ है । उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा " देखो इसमें
परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, किसी भी पुरातत्ववेत्ता के लिए यह पहला लेसन है । इसे
सम्पूर्ण रूचि और कंसेन्ट्रेशन के साथ करना आवश्यक है इसलिए कि एक्सप्लोरेशन से ही
हमें पता चलता है कि उत्खनन की दृष्टि से यह साईट काम की है या नहीं । दुनिया में
जितने भी पुरातात्विक महत्त्व के स्थान हैं वहां सबसे पहले एक्सप्लोरेशन ही किया
गया था । तुम लोगों ने स्विटज़र लैंड के ज्यूरिख शहर का नाम सुना होगा वह शहर पूरा
का पूरा झील में पानी की सतह कम हो जाने पर मिला था, और दूर क्यों जाते हो अपने
मोहनजोदाड़ो की खोज भी इसी तरह अंग्रेजों द्वारा रेल की पटरियाँ बिछाने के लिए
खुदाई करते हुए हुई थी । अब इसी जगह को देख लो, अगर यहाँ थोड़े बहुत भी अवशेष मिल
रहे हैं तो इससे पता चलता है कि यहाँ आसपास कोई बस्ती रही होगी और यह अवशेष भी
इसलिए मिल रहे हैं कि नदी के बहाव से यहाँ की बहुत सारी मिटटी बह गई और यह अवशेष
ऊपर आ गए ।ऐसा भी हो सकता है कि यह अवशेष आसपास से कहीं से बहकर आये हों तो इस बात
का भी हमें पता लगाना होगा ।
"लेकिन सर, क्या अवशेष मिलने भर
से यह तय हो जाता है कि इस जगह की खुदाई करनी है ? अजय ने अपनी कमर सीधी करते हुए
कहा । " नहीं रे, " सर ने हँसकर कहा
" खुदाई तो लास्ट स्टेप है इससे पहले अन्य माध्यमों से जगह के बारे
में जानकारी लेना जरुरी होता है । एक्सप्लोरेशन में बहुत सारी चीज़ें आती हैं जैसे
आसपास के ग्रामीणों से बात करना, वहाँ प्रचलित परम्पराओं,लोककथाओं और किंवदंतियों
का अध्ययन करना, वहाँ के बारे में कोई साहित्यिक या पौराणिक स्त्रोत हो उसे देखना ।
आखिर हमारे पूर्वज बहुत कुछ लिख गए हैं । हमने विभिन्न स्थानों के उत्खनन के लिए
ऐसी कई साहित्यिक सामग्री का सहारा लिया है जिनमे रामायण है, महाभारत है, कल्हण की
राजतरंगिणी है, फाहियान मेगास्थनीज़ जैसे यात्रियों के लेख हैं । फिर स्थान विशेष
से सम्बंधित भौगोलिक नक़्शे भी देखना होता है । स्थानों के नाम का भी महत्व होता है
जैसे बुद्ध से सम्बन्धित स्थानों के नाम से उनके प्राचीन स्थान होने का पता चलता
है । दक्षिण में ऐसी कई साइट्स पाई गई हैं जिनके नाम 'विभूतिपाडू' जैसे थे, यहाँ
नव पाषाण युग के राख के ढेर पाए गए ।"
" हाँ सर, विभूति या भभूती राख
को कहते हैं मेरे ख्याल से इस शब्द का अर्थ राख का ढेर ही होगा ।" अजय ने
उछलते हुए कहा । सर हँसने लगे " लगता
है इसकी समझ में आ गया ,इसको संस्कृत में अच्छे नंबर मिलते होंगे । अजय अपनी तारीफ़
सुनकर खुश हो गया । सर ने अपनी बात जारी रखी.." खैर एक्सप्लोरेशन के और भी
तरीके हैं जैसे अब तो ताप,विद्युत और चुम्बक का प्रयोग भी होने लगा है, एरियल
फोटोग्राफी भी होती है और रसायनों का प्रयोग भी
होता है, खैर उसके बारे में मैं बाद में बताऊंगा अब दो बज रहे हैं वापस
चलते हैं ।" इसके साथ ही सर ने अन्वेषण कार्य समाप्ति की घोषणा की । अपने
हिस्से के ढूँढे हुए अवशेष लेकर सर से बाते करते हुए हम लोग कैम्प की ओर वापस
लौटने लगे । यह एक पुरातत्ववेत्ता की
प्रारम्भिक कक्षा थी और यहाँ धैर्य का पाठ भी पढ़ाया जाना ज़रूरी था ।
झुक झुक कर अवशेष ढूँढने की वज़ह से हम
लोगों की पीठ दुखने लगी थी। सबका मूड था कि भोजन के पश्चात तम्बू में तानकर सोया
जाए लेकिन सर ने आदेश दिया "भोजन के उपरांत सभी लोग ट्रेंच क्रमांक दो पर पहुँचें
। " " दिन की नींद हमारी किस्मत
में नहीं है ।" रवीन्द्र ने बुझे मन से कहा । "वैसे भी हम कहाँ रोज़ दिन
में सोते हैं ,हमारी दोपहर तो लायब्रेरी में बीतती है ।" मैंने रवीन्द्र को
दिलासा देते हुए कहा । वैसे भी सर की नज़रों से बचना बहुत मुश्किल था, हम कुल जमा छह
लोग ही तो थे, एक भी अगर गायब होता तो पकड़ में आ जाता । भोजन के पश्चात बेमन से हम
लोग साईट पर पहुंचे और सर के आदेशानुसार ट्रेंच क्रमांक दो पर अपना कार्य प्रारम्भ
करने की तैयारी करने लगे । सर ने हमें
कुदाल चलाना सिखा ही दिया था सो आज कुदाल पकड़ने और चलाने का पहला दिन था । हम सबने
एक एक बार कुदाल पकड़कर देखी । कुदाल थामते ही हमारा मन प्रसन्न हो गया और आलस्य
दूर हो गया ।
मैंने कुदाल पकड़ी ही थी कि सर ने कहा
"ठहरो" । मुझे लगा शायद मेरे कुदाल ग़लत पकड़ने के तरीक़े पर वे कुछ कहने
वाले हैं ..। मैंने कहा " सर ,कुदाल चलाना तो हमने सीख लिया है ?" सर ने
कहा " वो तो ठीक है लेकिन इसके अलावा अन्य टूल्स का भी उपयोग कैसे करते हैं
वह भी तो तुम लोगों को पता होना चाहिए । फिर अभी कुछ और सेफ्टी प्रिकाशंस तुम
लोगों को बताना है । अब विदेशी हिसाब से तो मैं बता नहीं सकता लेकिन खुदाई शुरू
करने से पहले एक पुरातत्ववेत्ता को अपनी सुरक्षा का ध्यान भी रखना पड़ता है ।
ट्रेंच में उतरने से पहले यह देखना ज़रूरी है कि वह कितनी गहरी है और उसके भीतर
कहीं कोई गैस आदि का रिसाव तो नहीं हो रहा है ऐसी स्थिति में कोई मास्क पहनकर जाना
होता है । उसके अलावा भीतर कोई कीड़े-मकोड़े, सांप,चूहे,छिपकली आदि तो नहीं हैं उसकी
भी जाँच करनी पड़ती है ।
" सर , अगर सांप निकल आये तो
क्या करना होगा ? अजय ने बीच में ही सवाल किया । " क्या करना होगा , अरे उसे
भगाना होगा और क्या ।" सर ने कहा । " सर ये अजय को तो छिपकली से भी डर
लगता है ।" अशोक ने हँसते हुए कहा । "अरे !" सर ने आश्चर्य से कहा
.." इसकी तो शादी हो गई है फिर भी डरता है ..और अगर इसकी बीबी भी छिपकली से
डरती होगी तो फिर बहुत मुश्किल है ।"
"ठीक है ,कोई बात नहीं इसकी
छिपकली तुम लोग भगा देना । " सर ने कहा " आगे सुनो । इसके अलावा अपनी
वेशभूषा का ध्यान भी रखना है ,उचित जूते और कपड़े पहनने हैं ,सर पर भी सुरक्षा के
लिए कुछ होना चाहिए । ट्रेंच में उतरते समय यह भी ध्यान देना ज़रूरी है कि इतनी
सावधानी से उतरें कि ट्रेंच ढह न जाये, विशेषकर रेतीली ज़मीन या भुरभुरी मिटटी वाली
ट्रेंच पर यह ध्यान रखना ज़्यादा ज़रूरी है ।" सर हमें सुरक्षा के विषय में बता
रहे थे और हम उनकी बातें बहुत ध्यान से सुन रहे थे .." ट्रेंच में उतरने से
पहले ट्रेंच के बाहर फर्स्ट एड बॉक्स है या नहीं यह भी देखना ज़रूरी है और उसमे
आवश्यक वस्तुएँ जैसे टिंचर,मलहम, चोट पर
बांधने के लिए पट्टी आदि भी होनी चाहिए, पानी की बोतल भी रखें । इसके अलावा आग
बुझाने का यंत्र भी होना चाहिए । हर एक की डायरी में पास के किसी अस्पताल का पता
या डॉक्टर का फोन नम्बर भी होना चाहिए ।
इस ट्रेंच क्रमांक दो पर पिछले कुछ
दिनों से उत्खनन चल रहा था । यह ट्रेंच 1.90 मीटर पहले से ही खुदी हुई थी सो उसके आगे
हमने सर के मार्गदर्शन में लगभग एक घंटे
में 20 सेंटीमीटर खुदाई और की । खुदाई प्रारंभ करने से पूर्व हम लोग एक अद्भुत
कल्पना कर रहे थे । हमें लग रहा था कि जैसे ही हम खुदाई प्रारंभ करेंगे अवशेषों के
ढेर मिलना शुरू हो जाएँगे । हम लोग बार बार आँखें फाड़कर ट्रेंच के भीतर झाँकते और
कोशिश करते कोई दीवार नज़र आ जाए, या कोई मटका या कोई और महत्वपूर्ण वस्तु मिल
जाए लेकिन कोई विशेष उपलब्धि नहीं हुई ।
हाँ, ट्रेंच की दक्षिण दिशा, जिसे तकनीकी भाषा में साउथ एक्सटेन्शन कहा जाता है की
ओर विस्तृत ट्रेंच में एक टूटा हुआ टेराकोटा ऑब्जेक्ट यानि पकी मिट्टी का टूटा हुआ
एक बैल प्राप्त हुआ ।
" सर यह बैल मिला है " अजय
ने खुश होकर चिल्लाते हुए कहा । सर आये उसे हाथ में लिया और कहा " बढ़िया टेराकोटा है ।" "नहीं सर यह
बैल है । " राममिलन ने कहा । सर ने
कहा " हाँ भाई यह बैल ही है लेकिन मिटटी को पकाकर जो शिल्प अथवा बर्तन बनाते
हैं उसे 'टेराकोटा' ही कहते हैं । " अजय की ख़ुशी छलक रही थी इसलिए कि साउथ
एक्सटेंशन की ओर वही काम कर रहा था ।
"सर यह टेराकोटा बनाना मनुष्य ने
कब सीखा ? उसने मौका देखकर सवाल पूछा । सर ने जवाब दिया "भाई शिल्प तो पहले
भी मिटटी के ही बनते थे लेकिन जब मनुष्य ने आग की खोज की और उसमें मिटटी को पकते
हुए देखा तो उसने सायास मिटटी से शिल्प बनाकर उन्हें पकाना शुरू किया । टेराकोटा
यह शब्द बहुत बाद का है और अंग्रेज़ों का दिया हुआ है । यह शब्द इटालियन भाषा से
आया है जिसका अर्थ होता है पकी हुई मिटटी । ऐसे कई टेराकोटा मोहनजोदड़ो की खुदाई
में मिले हैं, प्राचीन मिस्त्र, मेसोपोटामिया ,यूनान और चीन में भी प्राप्त हुए
हैं । इसमें बिना चमक वाले और चमकदार दोनों तरह के टेराकोटा हैं ।"
" सर हम लोग आजकल मिटटी को पकाकर
जो शिल्प बनाते हैं वे भी तो टेराकोटा ही कहलायेंगे न ?" अजय ने पूछा । " बिलकुल ठीक कह रहे हो तुम
।" सर ने कहा । " आज भी इनका प्रयोग बहुतायत में होता है । पोले के
त्यौहार में तुम लोग जो मिटटी का बैल देखते हो वह भी टेराकोटा ही है । बल्कि
प्राचीन काल से ही इसके विविध उपयोग हो रहे हैं, नक्काशीदार कवेलू और छतों को
सजाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है बंगाल में तो बहुत से मंदिरों की छत भी
टेराकोटा की ही है ।"
हमें अपनी इस उपलब्धि यानि उस
टेराकोटा बैल को देख देखकर बहुत मज़ा आ रहा था । किशोर ने उसे देखकर कहा "इसकी
सूरत तो राममिलनवा से मिलती है ।" सो उसने मज़ाक मज़ाक में उसका नाम '
राममिलनवा ’ रख दिया । राममिलन ने भी बुरा नहीं माना आखिर यह हमारे छात्र दल की
पहली सफलता थी । हम लोग खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे, हमें ऐसा लग रहा था कि
अब हमारा भविष्य तय हो गया है और आगे जाकर हमें इसी तरह देश भर में उत्खनन करना है,
दबे हुए इतिहास को खोज निकालना है । सुखद भविष्य की कपोल कल्पना करते हुए हम इस
यथार्थ को क्षण भर के लिए भूल गए कि एम. ए. करने के बाद हमें भी अन्य लोगों की तरह
नौकरी के लिए परीक्षाएँ देनी होंगी, इन्टरव्यू देने होंगे और हिन्दी के मुहावरे
में कहें तो चप्पलें घिसनी होंगी ।
आपका- शरद कोकास