“ इतिहास भी यार बड़ी मज़ेदार
चीज़ है । “ अशोक त्रिवेदी ने एक और सिगरेट सुलगाते हुए कहा । “बचपन में, स्कूल में
गुरूजी कहा करते थे, ’हिस्ट्री जाग्रफी बड़ी बेवफा, रात को रटो और दिन को सफा ।' हाँ, इसलिए तो लोग मज़बूरी में इतिहास पढ़ते हैं ।
क्या हम लोग भी प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व में एम.ए. इसलिए नहीं कर रहे हैं कि इस डिग्री के बाद कहीं ठीक
ठाक नौकरी मिल जाए ? ” अजय ने प्रतिक्रिया व्यक्त की । “और नहीं तो क्या ?”
रवीन्द्र कहने लगा “सही तो हे यार ..कितना मुश्किल है लम्बी लम्बी वंशावलियाँ रटना,
वही राजा-महाराजाओं के किस्से, युद्धों की कहानियाँ, राजनैतिक षड़यंत्र, नाच-गाने
की महफिलें, हरम की ऐयाशियाँ, भूत-प्रेतों की तिलिस्मी कथायें..पुत्र द्वारा पिता
की हत्या ..”
“नहीं नहीं… ऐसा भी नहीं है
। “ मैंने उसे बीच में टोका । “इतिहास का अर्थ केवल यही नहीं है ..इतिहास तो हमारा
अपना ही अतीत है । जैसे हम रोज़मर्रा के जीवन में अपनी पिछली सफलताओं और असफलताओं
से सबक लेते हैं इतिहास से सबक लेने का अर्थ भी यही है । अपनी ग़लती से सबक लेना जैसे व्यक्तिगत हित में है वैसे ही
मनुष्य जाति के इतिहास से सबक लेना सम्पूर्ण मनुष्यता के हित में है । “ ठीक है
,मान लेते हैं “ अजय ने कहा “लेकिन इतिहास सही है या गलत यह कौन बतायेगा ? हम तो
वही इतिहास जानेंगे ना जो हमें पढ़ाया जाएगा ? कुछ इतिहास हमें अंग्रेजों ने पढ़ाया
कुछ उनके वंशज पढ़ा रहे हैं । बचपन से अपनी किताबों में यही सब ऊल-जलूल चीजें तो पढ़
रहे हैं हम लोग इतिहास के नाम पर । “
“नहीं, पूरी तरह ऐसा भी नहीं
है ।“ रवींद्र ने दलील प्रस्तुत करते हुए कहा । “गुलामी के दौर में अंग्रेजों ने
यहाँ का अधिकांश इतिहास लिखा । ज़ाहिर है उसमें उन्होंने अपनी प्रशंसा ही लिखी होगी
। उनके विरोध में हमारे यहाँ के लोगों द्वारा जो इतिहास लिखा गया उसमें अपनी
संस्कृति का गौरव गान था जो कुछ अतिशयोक्ति लिए
हुए था । उस दौर में ऐसा करना उन्हें ज़रूरी लगा होगा क्योंकि उस समय
अंग्रेजों से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करना ही यहाँ के आम जन का उद्देश्य था और
अपनी आज़ादी व अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए
यह अनुचित भी नहीं था । यह उस दौर का राष्ट्रवाद था । ज़ाहिर है उस समय के
इतिहासकार इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए
लेखन कर रहे थे और केवल इतिहास में ही नहीं साहित्य में भी इसी तरह का लेखन
हो रहा था । स्वतंत्रता की चेतना के लिए
आव्हान गीत लिखे जा रहे थे । अपने कुलपति शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का ही गीत
ले लो..”
*युगों की सड़ी रूढ़ियों को
कुचलती*
*ज़हर की लहर सी लहरती मचलती*
*अन्धेरी निशा में मशालों सी
जलती*
*चली जा रही है बढ़ी लाल सेना*
अब इसे सुनकर तो ऐसा ही
लगेगा जैसे आज़ादी की लड़ाई सिर्फ साम्यवादियों ने लड़ी हो जबकि उसमें और भी लोग
शामिल थे ।“
“लेकिन पूर्वाग्रह के साथ लिखे
गए इतिहास में झूठ तो शामिल हो गया ना इस
तरह “। अजय ने कहा । “हाँ यह बात तो है ।“ मैंने कहा “न उनका लिखा इतिहास सही था न
इनका लिखा । पूर्वाग्रह तो दोनों ही में शामिल थे ..लेकिन फिर भी इसे पूरी तरह
नकारा तो नहीं जा सकता और फिर इसके अलावा फिलहाल कुछ है भी तो नहीं हमारे पास ।"
“ठीक है, तुम ही लिखना नया इतिहास, डॉ.वाकणकर के सही वारिस तो तुम ही हो..। अपुन
को तो कहीं मास्टर-वास्टर की नौकरी मिल जाए अपने लिए बहुत है ।“ अजय उबासी लेते हुए बोला । अशोक ने उसकी
बात पर चुटकी ली ..“ फिर अपन एम ए करके प्रायमरी स्कूल में मास्टर की नौकरी
करेंगें और बच्चों को वही इतिहास पढ़ाएंगे जो हमारे बाप-दादा पढ़ाते रहे …एक था राजा
एक थी रानी दोनों मर गए खतम कहानी …।“ “ठीक है, ठीक है, हेरोडोटस, थूसीदीदस, इब्त
खल्दून, मैंकियावेली, ट्वायनबी, इवेल्यान, और कार्ल मार्क्स के वंशजों रात बहुत हो
गई है अब सो जाओ बाक़ी की बातें कल करेंगे ।“ रवीन्द्र ने अपना अंतिम फरमान ज़ारी
करते हुए कहा ।
waah waah
जवाब देंहटाएंatyant rochak aur sarthak post
शरद जी
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी कविता हमारे ब्लाग में डालने के लिए हम आपके आभारी है। इस तरह का प्यार और स्नेह सदा बनाए रखें।
पंडित जी सही लिखा आप ने.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
गलती के लिये माफ़ी चाहूंगा पडित जी की जगह शरद कोकास पढिये
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