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बीच में डॉ. कैलाशचन्द्र जैन पुरातत्व विभाग वि वि के विभागाध्यक्ष |
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उत्खनन परिसर बरगद की छाँव |
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रविन्द्र ,डॉ.वाकणकर .डॉ.आर्य , शरद व अशोक |
अगर आपने पिछली पोस्ट पढी होंगी तो यह बात अवश्य जान गये होंगे कि पढने लिखने के अलावा भी हम लोग बहुत सारा ज्ञान प्राप्त कर रहे थे । बस इसी ज्ञान को आप लोगों के साथ बाँटने का प्रयास है यह " एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी " ।
तो शीघ्र ही प्रारम्भ करते हैं " एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी - दसवें दिन के दूसरे भाग से आगे का किस्सा । निवेदन यह है कि यदि आपने पिछले भाग न पढें हों तो कृपया एक निगाह उस पर डाल लें , और न भी डाल सकें तो कोई बात नहीं इस शिविर में जिस दिन से शामिल हों उसी दिन से आपको आनन्द आयेगा - आपका - शरद कोकास
हां, शरद जी, इसकी कमी महसूस हो रही थी।
जवाब देंहटाएंदोबारा जल्दी शुरू कीजिये।
स्वागत के लिए तैयार हैं हम.
जवाब देंहटाएंहां प्रतीक्षा करेंगे, शरद जी।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब का एवेंचर है यहॉं....अच्छा अंतराल है...पिछली सभी पोस्ट पढ़कर अद्यतन होना है...---स्वागतम् !
जवाब देंहटाएंदेर आयद, दुरूस्त आयद।
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अपना सुनहरा भविष्यफल अवश्य पढ़ें।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
इंतजार है.....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें...कुछ स्थिर हुआ तो कुछ् अवश्य गतिमान होगा..यही नियति है!
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