
4 - वो हेलनवा का क्या हुआ
शीघ्र ही तैयार होकर हम लोग भाटी जी
की भोजनशाला में पहुँच गए । नाश्ते में मालवी स्टाइल में बना गर्मागर्म पोहा हमारा
इंतजार कर रहा था । हमने अपनी अपनी प्लेट में पोहा लिया और लौंग की नमकीन, अमचूर
के पाउडर, और हरे धनिये से उसकी गार्निशिंग करने लगे । राममिलन भैया को भूख ज़्यादा
लगी थी और इससे ज़्यादा उत्सुकता हेलेन के बारे में जानने की थी ।उन्होंने सीधे चम्मच
भर पोहा मुँह में डाला और आर्य साहब से
सवाल किया "सर वो आप हेलनवा के बारे में कुछ कह रहे थे, हम तो सिर्फ एक सनीमा वाली हेलन को
जानते हैं ..ऊ.. पिया तू अब तो आजा वाली ..ई कऊन सी हेलन है ?"
आर्य साहब ने मुस्कुराते हुए कहा
" नहीं भाई, हम जिस हेलेन के बारे में कह रहे थे वह प्राचीन ग्रीक की हेलेन
है । अब इसके लिए मुझे आप लोगों को होमर के महाकाव्य इलियड की पूरी कथा ही सुनानी
पड़ेगी । " बिलकुल सर बताइए ना । " अजय ने भी उत्सुकता दिखाते हुए कहा ।
डॉ.आर्य ने अपनी घड़ी देखी और ट्रेंच पर पहुँचने के समय का अंदाज़ लगते हुए कहना
शुरू किया "हेलेन और ट्रॉय के युद्ध की यह कथा हमें यूनान के प्रसिद्ध कवि होमर
के महाकाव्यों में मिलती है । प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस ने होमर का काल आठ सौ
पचास ईसा पूर्व के लगभग बताया है । महाकवि
होमर ने दो प्रसिद्ध महाकाव्य ‘इलियड’ और ‘ओडीसी’ की रचना की है ।
"सर ये वही होमर हैं ना जो हमारे
यहाँ के सूरदास की भांति दृष्टिबाधित थे?" रवीन्द्र का सवाल था । सर ने
प्रशंसा के भाव में सिर हिलाया " बिलकुल ! होमर के बारे में कहा जाता है कि
वे एक निर्धन नेत्रहीन कवि थे और उन्होंने कुछ यथार्थ में अपनी कल्पना का
सम्मिश्रण कर यह दो महाकाव्य रचे । वे अपनी रचनाओं का यूनान के विभिन्न राज्यों और
नगरों में गायन भी किया करते थे । मौखिक परंपरा से होती हुई लगभग ईसापूर्व छठी
शताब्दी में उनकी यह साहित्यिक कृति लिखित रूप पा सकी जिसमे बाद में और परिवर्तन
हुए । प्राचीन यूरोप में होमर की लोकप्रियता का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है
कि सिकंदर अपनी मंजूषा में 'इलियड' की एक प्रति हमेशा रखता था और समय समय पर
राजनीति में उससे उद्धरण भी दिया करता था ।यह बाइबिल के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय
कृति थी । एक तरह से यह यूनानियों का धर्मग्रंथ ही था ।"
"सर आगे भी तो बताइये। "
अजय की उत्सुकता बढती जा रही थी । आर्य साहब फिर मुस्कुराए और कहने लगे "भाई,तुम्हें
बड़ी जल्दी है हेलेन के बारे में जानने की । पहले पूरी कथा और इसके पीछे का इतिहास
तो जान लो । इतिहास के विद्यार्थियों को कोई भी साहित्यिक कृति पढ़ते हुए भी
पूरे इतिहास बोध से लैस होना चाहिए उसी
तरह साहित्य के विद्यार्थियों को भी साहित्य पढ़ते हुए साहित्य के और देश दुनिया के
इतिहास के बारे में जानना चाहिए ।"
सर की बात सुनकर अजय थोड़ा सा झेंप गया
। आर्य साहब ने उसकी ओर ध्यान न देते हुए आगे का बखान शुरू किया " दरअसल 'इलियड'
की कथा ट्रॉय और स्पार्टा इन दो प्राचीन राज्यों के युद्ध की कहानी है इसलिए सबसे
पहले थोडा बहुत मैं तुम लोगों को इन राज्यों के बारे में बताना चाहता हूँ । ट्रॉय जिसे
प्राचीन यूनानी भाषा में इलियोस या इलियोन भी कहते हैं , यूनान से पश्चिम में
इजियन सागर के तट पर बसा एक शहर था । कहा जाता है कि यूनानियों के देवता डारडेनस ने
आइडा पर्वत की तलहटी में सर्वप्रथम डारडेनिया नामक नगर बसाया था । इसी डारडेनस के
वंशज राजा ट्रोस के तीन बेटे हुए इलस, एसरेकस और गेनिमिडिज़ । इनमें से इलस या
इलियास ने इसी स्थान पर आइडा पर्वत कि ढलान पर ट्रॉय नगर की स्थापना की थी, इसलिए ट्रॉय
नगर को इलियम भी कहते हैं । होमर के
महाकाव्य 'इलियड' का नाम इसी 'इलियम' के नाम पर है ।"
आर्य सर ने एक नज़र युवा चेहरों पर
डाली । सब बहुत ध्यान से यह आख्यान सुन रहे थे । उन्होंने आगे कहना शुरू किया
"ट्रॉय के निकट ही यूनान में स्पार्टा का राज्य था । ट्रॉय और स्पार्टा इन
दोनों राज्यों के बीच एजियन सागर था और आज के हिसाब से इन दोनों के बीच की दूरी
साढ़े छह सौ किलोमीटर थी । स्पार्टा में टेंटेलस का वंश चलता था । टेंटेलस के पौत्र
एट्रियस के एगमेनन और मेनेलियस यह दो
पुत्र हुए । इसी स्पार्टा के राजा
मेनेलियस की पत्नी थी हेलेन । वह अपूर्व सुंदरी थी । ट्रॉय के राजा इलस के
प्रपौत्र राजकुमार पैरिस ने स्पार्टा की रानी हेलेन के अभूतपूर्व सौन्दर्य के बारे
में सुन रखा था । वह सौन्दर्य की देवी एफ्रोडायटी की प्रेरणा से यूनान देश की
यात्रा पर निकला और स्पार्टा पहुंचा । अब यहाँ एक उपकथा और है । तुम
लोग कहो तो वह कथा भी तुम्हें सुनाऊँ ? " " हाँ,हाँ सर, ज़रूर सुनाइये
" हम सभीने एक साथ कहा । कहानी में हेलेन का प्रवेश हो चुका था और हम लोगों
की उत्सुकता में वृद्धि हो गई थी ।
"तो सुनो" सर ने कहा "
वैसे मैं तुम लोगों को बताना चाहता हूँ कि ग्रीक माइथोलॉजी की कथाओं में एक
विशेषता यह है कि यहाँ भी देवी-देवता मनुष्यों के साथ युद्ध में भाग लेते हैं,
उनसे विभिन्न कार्य करवाते हैं, उनके साथ उनके प्रणय सम्बन्ध और विवाह भी होते हैं
।" "मतलब देवी-देवताओं के मनुष्यों से प्रेम सम्बन्ध ?" अशोक ने
अपनी जिज्ञासा प्रकट की । "हाँ" आर्य सर ने कहा ऐसा ग्रीक माइथोलॉजी में
है । पेरिस मनुष्य था और एफ्रोडायटी देवी से उनके संबंधों के बारे में एक कथा है ।"
"एक बार समुद्रदेव नीरियस की
बेटी थेटिस और यूनानी योद्धा पीलियस के विवाह के अवसर पर सब देवता इकठ्ठे हुए । लेकिन
कलह की देवी एरिस को वहाँ आमंत्रित नहीं किया गया सो उसने वहाँ कलह फैलाने के
उद्देश्य से सोने का एक सेब रख दिया जिस पर लिखा था 'सबसे रूपवती के लिए' । सो
सबसे लावण्यमयी कहलाने के लिए देवियों में होड़ लग गई । इस प्रतियोगिता में तीन
देवियाँ हेरा, एथिनी और एफ्रोडायटी शामिल
हुई ।"
"मतलब यह कि उस समय भी मिस यूनिवर्स
टाइप की प्रतियोगिता होती थी ?" अजय ने सवाल किया । "हाँ बिलकुल"
आर्य सर ने कहा । " ट्रॉय के राजा इलस के प्रपौत्र राजकुमार पैरिस को इस
प्रतियोगिता का निर्णायक बनाया गया इसलिए कि उस समय पैरिस की ख्याति उदार और
निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में थी । तीनों देवियाँ स्केमेंडर नदी में स्नान के
पश्चात पैरिस के सन्मुख पूर्णतया निर्वस्त्र
स्थिति में प्रकट हुई । अपने पक्ष में निर्णय देने के लिए हेरा ने उसे दुनिया पर
शासन का ,एथिनी ने ज्ञान और विवेक का तथा एफ्रोडायटी ने उसे संसार की सबसे रूपवती
स्त्री हेलेन को प्रदान करने का प्रलोभन दिया ।"
"वैरी गुड मतलब उस समय भी
भ्रष्टाचार चलता था ।" अशोक त्रिवेदी ने बीच में ही कहा । "बिलकुल ! " आर्य सर ने कहा "अब
पैरिस को न दुनिया पर शासन करने की इच्छा थी न उसे ज्ञान और विवेक की आवश्यकता थी मतलब
न वह साम्राज्यवादी था न ज्ञानपिपासु था बल्कि रूप का लोभी था इसलिए उसके मन में हेलेन
को पाने की इच्छा बलवती हो गई सो पैरिस ने एफ्रोडायटी के पक्ष में सबसे रूपवती होने का निर्णय दे दिया
। दरअसल यही निर्णय ट्रॉय के युद्ध का बीज साबित हुआ । हेरा और एथिनी यह दोनों
देवियाँ पैरिस के इस निर्णय से क्रोधित हो गईं और ट्रॉय के युद्ध में उन्होंने
पेरिस के विरुद्ध स्पार्टा का साथ दिया और ट्रॉय नगर को नष्ट कर दिया ।
"लेकिन सर यह युद्ध कैसे हुआ
?" अजय ने सवाल किया " हाँ वही बता रहा हूँ ।" सर ने कहा " फिर
वह एक दिन ट्रॉय का राजकुमार पेरिस एफ्रोडायटी की प्रेरणा से स्पार्टा पहुँच गया । उसका भव्य
स्वागत किया गया, आखिर वह पड़ोसी देश का राजकुमार था । लेकिन जैसे ही उसने रानी हेलेन
को देखा उस पर उसका दिल आ गया और वह अपनी सुध-बुध खो बैठा । इस बीच कुछ दिनों के
लिए हेलेन का पति राजा मेनेलियस किसी काम से स्पार्टा से क्रीट द्वीप गया हुआ था
सो मौका देखकर पैरिस उसकी पत्नी को लेकर भाग गया । अपने राज्य ट्रॉय में पहुँचाने
पर उसका भव्य स्वागत किया गया जैसे दूसरे की पत्नी का अपहरण करके उसने कोई बड़ा काम
किया हो ।“
राममिलन भैया से रहा नहीं गया और
उन्होंने आश्चर्य से अपनी आँखे फाड़कर कहा “ जो भी हो यह काम उसने बहुत ग़लत किया
दूसरे की लुगाई को भगाकर ले जाने में कौनो शान की बात है भैया ? हमरे यहाँ रामायण
में ओ ससुरा रावण भी इही किया रहा जौन की
सजा उसे मिली। रामजी ने उसका काम तमाम कर दिया ।अब समझे इसी कारण वहाँ ट्राई की
लड़ाई हुई होगी । तो नई बात का है ..ई तो हमरे रामायण जैसी ही कथा है । “ रवीन्द्र
ने कहा " हो सकता है भैया ,अलग अलग देशों के महाकाव्यों में भी कुछ कथाएं
होती हैं जो एक जैसी लगती हैं ।"
डॉ.आर्य ने अपनी बात जारी रखी ”राममिलन
ठीक कह रहे हैं, युद्ध का कारण यही था ।
मेलेनियस जब लौटकर आया तो हेलेन को अपने
महल में न पाकर दुखी हो गया और उसने उसे वापस पाने के लिए ट्रॉय पर आक्रमण की
योजना बनाई । उसने यूनान के तमाम कबीलों से इसके लिए मदद मांगी । जब हेलेन और मेलेनियस
का विवाह हुआ था उस समय आसपास के तमाम राजा उस अवसर पर पधारे थे और उन्होंने
आश्वासन दिया था कि कोई भी मुसीबत आने पर
वे उसका साथ देंगे सो वे सब लोग उसके साथ हो गए । इस तरह अस्त्र शस्त्र से
सुसज्जित होकर स्पार्टा की सेना ने ट्रॉय पर आक्रमण के लिए कूच किया ।"
"अब देखिये यहाँ यह होता है कि
देवता भी परोक्ष रूप से इस युद्ध में कैसे हस्तक्षेप करते हैं ।" आर्य सर ने
बात आगे बढ़ाई । "ट्रॉय जाते हुए रास्ते में उन्हें अनेक बाधाएँ भी मिलीं जैसे
पवन देवता उनके प्रतिकूल हो गए । फिर उन्होंने उन्हें प्रसन्न करने के कुछ उपाय
किये और अंततः वे लोग सागर के मार्ग से ट्रॉय पहुंचे । ट्रॉय नगर एक पहाड़ी पर स्थित था और उसके चारों ओर
पत्थर की दीवार थी । मेलेनियस की सेना ने अपना शिविर सागर तट पर स्थापित किया और
अपने सेना नायकों के नेतृत्व में ने ट्रॉय पर आक्रमण कर दिया । ट्रॉय वासियों ने
जमकर उनका मुकाबला किया । यूनानी दस वर्ष तक ट्रॉय को घेरे रहे । इस बीच उनके अनेक
योद्धा भी मारे गए । स्पार्टा के यूनानियों का प्रमुख योद्धा एकीलीज था जिसका
युद्ध ट्रॉय के योद्धा हेक्टर से हुआ । कहते है एकीलीज एड़ी में तीर लगने से मरा, उसकी
माँ थेटिस ने जो एक देवी थी बचपन में उसे एड़ी पकड़कर पवित्र स्टिक्स नदी में नहलाया
था जिसके कारण एड़ी के अलावा उसका सारा शरीर कठोर बन गया था। ” “ अरे ! “ राममिलन ने
कहा “ ऐसी ही कथा हमारे यहाँ दुर्योधन की भी तो है महाभारत में । “
डॉ. आर्य ने अपनी कथा जारी रखी...“ हो
सकता है ,पौराणिक कथायें एक सभ्यता से दूसरी सभ्यता में आती जाती रहती हैं । आगे
सुनो .. इस बीच हेलेन का अपहरण करने वाला पेरिस भी मारा गया । क़ायदे से युद्ध बंद
हो जाना चाहिए था और ट्रॉय वासियों को उन्हें हेलेन को सौंप देना चाहिए था लेकिन
ट्रॉय के निवासी त्रोज़नो के हौसले तब भी बुलंद थे, वे स्पार्टा वासियों को ट्रॉय
नगर में प्रवेश करने से रोकते रहे । जब स्पार्टा वासी यूनानी युद्ध में उन्हें
नहीं हरा सके तो उन्होंने एक चाल चली ।"
हम सब आर्य सर की बातें बहुत ध्यान से
सुन रहे थे .."स्पार्टा के एक योद्धा ओडीसीयस की सहायता से उन्होंने लकड़ी का एक विशालकाय घोड़ा बनाया
जिसमें सबसे निचले भाग में एक खोखला स्थान रखा गया । इस भाग में यूनानी सैनिक अपने
अस्त्र-शस्त्र लेकर छुप गए । बाकी सभी वापस लौटने का दिखावा करते हुए पास के एक
द्वीप पर चले गए । घोड़ा उन्होंने नगर
द्वार पर रख दिया । रात में ट्रायवासी अपने आप को जीता हुआ मानकर और यह सोचकर कि
स्पार्टा के सैनिक वापस लौट गए हैं घोड़ा नगर के भीतर ले आए और राग-रंग और जीत के
जश्न में डूब गए । मौका देखकर उसमें छुपे
हुए सैनिक बाहर निकले, उन्होंने ट्राय के सारे पुरुषों को मार डाला और स्त्रियों
को बन्दी बना लिया तथा पूरे नगर में आग लगा दी । उसके बाद वे विजयोल्लास के साथ
वापस स्पार्टा लौट गए । यह पूरी योजना
ओडिसियस नामक वीर योद्धा ने बनाई थी । नेत्रहीन कवि होमर ने अपने महाकाव्य ‘ओडीसी’ में इसी ओडिसियस के वापस लौटने का
वर्णन किया है । ‘इलियड’ में युद्ध की उत्तर कथा और सेना के वापस लौटने का वर्णन
है । “
अजय ने सवाल किया ” लेकिन सर, ऐसा
क्या सचमुच में घटित हुआ था ?“ डॉ.आर्य ने बताया “ होमर के महाकाव्य में पौराणिक
कथायें,दंतकथाएँ व लोककथायें इतनी हैं कि उन्नीसवीं
शताब्दी के मध्य तक तक लोग इन्हें पूरी तरह काल्पनिक ही मानते रहे लेकिन हेनरिख
शिलेमान और आर्थर ईवान इन दो जर्मन पुरातत्ववेत्ताओं ने सन 1868 में एशियाई कोचक में या वर्तमान टर्की में सागर तट
के पास हिसारलिक नामक टीले की खुदाई की है । । यहाँ विभिन्न कालों की अनेक
बस्तियों के साथ ट्राय के खन्डहर भी मिले हैं जिनके अनुसार इतिहासकारों ने ट्राय पर यूनानी हमले की
तिथी कोई 1200 ई.पू. तय की है । पर्याप्त प्रमाण न होने के कारण बहुत से इतिहासकार
अभी भी इसे ऐतिहासिक घटना नहीं मानते हैं । हाँलाकि पुरावेत्ताओं का काम अभी अंतिम
निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है और इसमें अभी बहुत विवाद है ।“
“लेकिन सर जी वो हेलनवा का क्या हुआ ?
राम मिलन इलाहाबादी ने सवाल किया ।“ अरे यार ,तुम अभी हेलेन पर ही अटके हो ? “ अजय
ने कहा ” अरे उसी की वज़ह से तो यह युद्ध हुआ था, बताया तो सर ने वे लोग वापस लौट
आये, अब वापस लौटेंगे तो ख़ाली हाथ थोड़े आयेंगे, हेलेन को लेकर ही आयेंगे ना । अगर
उसको वापस लाना न होता तो युद्ध काहे होता । “ मतलब हमारी सीता मैय्या जैसी ही
कहानी है क्या ? ” राम मिलन ने पूछा ।
“और क्या” आर्य सर ने कहा “भाई
पौराणिक कथाएँ और महाकाव्यों की कथाएँ तो
सभी देशों में लगभग एक जैसी ही हैं ,बस देवी देवताओं,राजाओं और स्थानों के नाम
देश-काल के अनुसार अलग अलग हैं ।” “लेकिन सर, कथाओं में जो है वैसा क्या सचमुच में
घटित हुआ है ?” अजय ने पूछा । “भाई यही सच और झूठ में अंतर ढूंढने का काम ही तो हम पुरातत्ववेत्ताओं का है,
लेकिन विडम्बना है कि लोग यहाँ भी पूर्वाग्रह से काम लेते हैं ।” आर्य सर ने लम्बी
साँस लेते हुए कहा फिर उठने का इशारा करते हुए बोले ” खैर छोड़ो इस विषय पर बाद में
बात करेंगे । अब यूनान से वापस अपने देश में आ जाओ और मालवा की ताम्राश्मयुगीन
सभ्यता की खोज में टीले पर चलो । ” हम लोग उठे और अपनी नोटबुक्स उठाकर टीले की ओर
चल पड़े ।