17 - ताम्राश्मयुगीन ब्यूटी पार्लर की तलाश
"बस
बस संवर गईं तेरी ज़ुल्फे ।" रवींद्र ने मुझे आईने के सामने से हटाते हुए कहा
" अब मुझे भी थोड़ा सा कंघी-वंघी करने देगा या नहीं ? वैसे भी तुझे क्या
ज़रूरत.. तेरे बाल बिखरे हों या संवरे वह तो तुझे ही देखती रहती है.."
"ले भाई " हम लोगों के बीच उपस्थित एकमात्र आईने के सामने से हटते हुए मैंने
कहा "तू भी कर ले, अब मुझे क्या पता था वर्ना मैं भी एक आइना ले आता ।"
"तुझे लाने की क्या ज़रूरत , उसकी आँखों में झाँक कर कंघी कर लिया कर ..मैं
संवारूंगी तुझे आइना हूँ मैं तेरा " रवींद्र की छेड़खानी चल ही रही थी और मैं
उसके छेड़ने का मज़ा ले रहा था । " "या फिर उससे कह देना कल तेरे लिए एक
आइना लेती आयेगी ।" " बस कर यार ।" मैंने कहा "हालत देखी है
उसकी, उस के घर में बमुश्किल एकाध आईना होगा ,मुझे दे देगी तो फिर खुद कंघी चोटी
कैसे करेगी ?"
"चलो ना यार ।"बाहर से अशोक
की आवाज़ आई " नाश्ता नहीं करना क्या ,ज़ोरों की भूख लग रही है .. एक ठो छोरी है
सब उसके चक्कर में लगे रहते हैं ।" "आ रहे हैं भाई, क्यों नाराज़ हो रहा
है " मैंने तम्बू से बाहर निकलते हुए कहा । मुझे देखकर अशोक मुस्कुराया ।
उसके गुलाबी होंठ और ज़्यादा गुलाबी हो उठे "तेरे तो अलग ही जलवे हैं बाबू
..कईं लफड़ा -वफड़ा मत कर बैठना ..इस साल भी तुझे टॉप करना हे कि नई ?" "
नहीं करूँगा भाई भरोसा रखो..दंगवाड़ा में कोई प्रेम कहानी जन्म नहीं लेगी .."
"फिर ठीक है ।" अशोक ने गरम गरम भजिया मुँह में डालते हुए कहा
"वर्ना गुरूजी तेरे साथ हम सबका भी कोर्ट मार्शल कर देंगे ।"
नाश्ता करके हम लोग सीधे टीले पर
पहुंचे । ट्रेंच क्रमांक चार हमारी राह देख रही थी । हमारी यह ट्रेंच मुख्य ट्रेंच
से लगी हुई ही थी इसलिए हमें अलग से मज़दूर नहीं दिए गए थे आवश्यकतानुसार हम उन्हें
बुला लेते थे । यह ट्रेंच हम लोगों के नाम से अलाट की गई थी और यहाँ प्राप्त
वस्तुएँ हमारी उपलब्धि में शामिल होने वाली थीं इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी और बढ़ गई
थी । सुबह की खिली खिली धूप बहुत भली लग रही थी और हम लोग उसका मज़ा लेते हुए काम
शुरू कर ही रहे थे कि देखा पास के शिव मंदिर तक आने वाले कुछ दर्शनार्थी हमारी
ट्रेंच का दर्शन करने भी आ गए ।
"भैया कोई भगवान की मूर्ति नहीं
मिली क्या ?" उनमें से एक ने सवाल किया । " मूर्ति तो नहीं मिली भाई ! "
रवींद्र ने कहा " और मिल भी जाये तो तुम्हें थोड़े ही देंगे, तुम लोग तो
दंगवाड़ा के चौक पर ले जाकर उसकी स्थापना कर दोगे और उसकी पूजा करने लगोगे । " भानपुरा की तरह ।" मैंने रवीन्द्र
की ओर देखकर हँसते हुए कहा । रवीन्द्र
बोला ” हाँ ,इन लोगों का क्या भरोसा वैसे ही करने लगें जैसे कुबेर की पूजा हमारे
यहाँ अन्नपूर्णा माता के रूप में करने लगे थे । “
“ ये क्या किस्सा है ? ” अजय ने सवाल
किया । “अरे वो बड़ा मज़ेदार किस्सा है ।“ मैंने कहा “दीपावली अवकाश से पूर्व मैं
रवीन्द्र के साथ उसके गाँव भानपुरा गया था, सुबह सुबह जब हम लोग घूमने निकले तो देखा एक चौक पर बहुत भीड़
लगी है ,मैंने रवीन्द्र से पूछा यहाँ क्या हो रहा है तो उसने बताया कि यहाँ
अन्नपूर्णा माता की पूजा हो रही है । करीब जाकर मैंने देखा तो अन्नपूर्णा माता
जैसी कोई प्रतिमा नहीं थी बल्कि वहाँ कुबेर की मूर्ति रखी थी तुन्दिल काया, कानों
में बड़े बड़े कुंडल, हाथ में धन की थैली और लोग उसी की पूजाकर रहे थे । मैंने कहा
"कहाँ है अन्नपूर्णा? तो रवीन्द्र ने कहा " बस यही है ..इसीको लोग
अन्नपूर्णा माता कहते हैं ।"
मेरी हँसी रुक नहीं रही थी मैंने
हँसते हुए रवीन्द्र से कहा “ रविंदर ..यह तो कुबेर है, इसकी पूजा अन्नपूर्णा के
रूप में ? ” तो रवीन्द्र ने मेरे मुँह पर
हाथ रखा और कहा “ धीरे बोल, अगर कोई सुन
लेगा तो बहुत मार पड़ेगी ।" फिर हम लोग उसे नज़र अंदाज़ करते हुए आगे बढ़ गए ।
"लेकिन यार रवींद्र " अजय ने कहा " तू तो वहाँ बचपन से रह रिया है
तूने कभी मना नहीं किया ?" रवीन्द्र ने ठंडी साँस भरते हुए कहा .."अब
क्या करें लोगों ने कुबेर को अन्नपूर्णा माता मान लिया है तो मान लिया , उनको पूजा
से मतलब । भले ही हम प्रतिमा शास्त्र के ज्ञाता हैं अगर इसे कुबेर बताकर पूजा करने
से रोकेंगे तो फालतू का बवाल खड़ा हो जाएगा ।“ शिवजी के दर्शन करने आये ग्रामीण भी
वहाँ खड़े हुए हमारी बात सुन रहे थे लेकिन उन्हें हमारी बात कुछ समझ में नहीं आई और
वे चुपचाप वहाँ से खिसक लिए ।
हम लोगों ने धीरे धीरे ट्रेंच में
उत्खनन शुरू ही किया था कि रवीन्द्र की ख़ुशी से भरी आवाज़ सुनाई दी ..“अरे यह तो
सूरमा लगाने की सींक है । " उसके हाथों में ताम्बे की एक सींक थी और आँखों
में चमक । वह हँसते हुए बोला “ ज़रूर उस ताम्राश्म युग में यहाँ कोई ब्यूटी पार्लर
रहा होगा ।“ “चुप ।“ अजय ने उसे डाँटते हुए कहा “ यह किसी के घर में रही होगी , फिर
तो यह पैर घिसने का पत्थर देख कर मैं भी कह सकता हूँ कि यहाँ उस ज़माने का हम्माम
रहा होगा ।“ राममिलन भैया दूर बैठे हम लोगों की बातें सुन रहे थे । वहीं से
चिल्लाकर बोले “भैया अभी से काहे आसमान सर पर उठाये हो जब कौनो चड्डी बनियान,
साबुन-वाबुन मिल जाए तब बताना ।“
किशोर ने राम मिलन को छेड़ना शुरू किया
“राममिलन तुम खुद तो कुछ करते नहीं हो बस बैठे - बैठे कमेंट करते रहते हो ।“
डॉ.आर्य हम लोगों की गूटर- गूँ सुन रहे थे, बोले “ ठीक तो कह रहा है राम मिलन
,इतनी जल्दी किसी परिणाम पर नहीं पहुँचना चाहिये, जब तक अन्य पूरक सामग्री न
प्राप्त हो जाए हम इतिहास विषयक कोई धारणा
नहीं बना सकते । ऐसा बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि नाल मिल गई है तो घोड़ा मिल ही जाएगा
। वैसे भी यह धातु थी इसलिए बची रह गई, हो सकता है सुरमादानी लकड़ी-वकड़ी की बनी हो
इसलिए नष्ट हो गई हो ..इसलिए कि उस काल के कपड़े लकड़ी इत्यादि तो पूरी तरह नष्ट हो
चुके हैं ।“
"हाँ सर सुरमादानी तो लकड़ी की ही
होगी जैसे कि आजकल हमारे घरों में सिंदूरदान होता है ।" अजय ने सर की बात का
समर्थन करते हुए कहा । फिर वह उछलकर बोला " मेने भी ना सर, अपनी शादी में
अपनी पत्नी की माँग लकड़ी के सिंदूरदान से
भरी थी ।" "बेटा अपनी शादी में अपनी पत्नी की ही मांग भरते हैं .."
रवीन्द्र ने हँसते हुए कहा .." ओर तेरे ससुर ने जो सोने की सींक दी थी मांग
भरने के लिए वो नहीं बताएगा ..?" क्या रवींद्र भैया आप भी .." अजय ने
थोड़ा शर्माते हुए कहा .." वो तो बाती मिलाई में दी थी , मांग तो चांदी की
सलाई से भरी थी ।"
"बस बस " आर्य सर ने कहा
" अब अपनी पोल खुद मत खोलो ।" इस थोड़े बहुत हँसी मज़ाक के बाद हम लोग फिर
गंभीर हो गए अब अशोक की बारी थी .."सर ,मेरे मन में अक्सर एक सवाल आता है ।
" उसने कहा । " आप कह रहे हैं
कि आदिम मानव जो कपड़े पहनता था वे पूरी तरह नष्ट हो गए फिर हम अभी जो आदिम मानव के
चित्र देखते हैं कि वह जानवरों की खाल के कपड़े पहने है या बाद के मनुष्य के
रंगबिरंगे कपड़े देखते हैं वे तो उत्खनन में कहीं मिले नहीं फिर क्या यह सिर्फ
कल्पना है ? " अशोक ने बहुत सही सवाल
किया था और हम प्रशंसा भरी निगाह से उसकी ओर देख रहे थे ।
सर ने कहा " तुम्हारा यह सवाल
वाजिब है । कपड़े ज़मीन के भीतर नष्ट हो जाने वाली वस्तु है । हमारी चमड़ी और मांस की
भांति उन पर होने वाली अनेक रासायनिक क्रियाओं
के कारण या कीड़े मकोड़े ,दीमक आदि की वज़ह से उनका नष्ट हो जाना स्वाभाविक है ।लेकिन
पुरातत्ववेत्ताओं को कुछ ऐसी सामग्री मिली है जिनके आधार पर यह तय किया गया कि आदिम
मनुष्य वस्त्र धारण करते होंगे, जैसे हड्डी की सुइयाँ और बाद के समय में कुछ ऐसी
वनस्पतियाँ जिनसे कपड़े रंगे जाते होंगे । हिमयुग के बाद के नियेंडरथल मनुष्य के
भीतर यद्यपि उस समय की शीत सहन करने की क्षमता थी लेकिन वह अपने आप को बचाने के
लिए जानवरों की खाल पहनता था , शुरूआती दौर में भले उसे सीना न आता हो लेकिन बाद
में हड्डी की सुई और पौधों के रेशों से उसने सीना सीख लिया । बाद के दौर में जब
प्राकृतिक रेशों से उसने कपड़े का आविष्कार किया तब उसके जीवन में क्रांति हो गई ।"
खुदाई करते हुए दोपहर तक हम लोग पचपन
सेंटीमीटर गहराई तक पहुँच गए । ट्रेंच की उपरी सतह में 'पेग क्र.दो' से 'पेग क्र.
दो बी' के बीच 'दो मीटर बाय दो मीटर' के क्षेत्र में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण
ऑब्जेक्ट हमें प्राप्त हुए जिनमें पैर घिसने का एक पत्थर, सुरमा लगाने की एक ताम्र
शलाका, मिट्टी का बना आग में पकाया हुआ एक पात्र तथा मनका शामिल है । लेकिन हमें सर
की बात सिद्ध करनी थी अतः पूरक सामग्री ढूँढने के उद्देश्य से हम लोगों ने दोपहर के
भोजन के बाद दक्षिण की ओर दो बाइ दो मीटर के हिस्से में भी चार सेंटीमीटर खुदाई कर
डाली । पर अफ़सोस उसमें भी हमें कोई महत्वपूर्ण ऑब्जेक्ट नहीं मिला ।
राम मिलन भैया टेरीकॉट का टाइट पैंट
पहने और धूप का काला चश्मा लगाए एक पत्थर पर बैठे हुए थे और हमारी मेहनत को अकारथ
जाते देख प्रसन्न हो रहे थे, हँसकर कहने लगे
“ का हो अजयवा .. चड्डी बनियान मिला कि नहीं तुम्हारे पुरखों का ..ढूँढो
ढूँढो, मोहनजोदाड़ो की तरह छोटा-मोटा नहाने का बाथरूम यहाँ भी मिलेगा । अभी एड़ी घिसने
का पत्थर मिला है ना , कुछ देर में साबुन भी मिलेगा, टुथपेस्ट और ब्रश भी मिलेगा और गाँव की गोरी के बालों को धोने
वाला रीठा छाप शंपू भी मिलेगा ।“ किशोर भैया मन ही मन गुस्सा हो रहे थे , धीरे से बोले
“ ई पंडितवा बहुतै बकबक कर रहा है ..इसको मज़ा
चखाना ही पड़ेगा । “
हमारी असफलता के बावज़ूद डॉ.आर्य ने हम
लोगों को दिलासा देते हुए कहा “ कोई बात नहीं अगर कुछ नहीं मिला ।
पुरातत्ववेत्ताओं के साथ अक्सर ऐसा होता है कि कई कई दिन मेहनत करने के बाद भी
उनके हाथ कुछ नहीं लगता । यहीं उनके धैर्य की परीक्षा होती है । जो अधीर होते हैं वे
आधी-अधूरी जानकारी के साथ गलत रिपोर्ट दे देते हैं और इस तरह गलत इतिहास रचने में
अपना योगदान देते हैं । कई बार उन पर गलत
रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी दबाव
डाला जाता है । कई प्रकार के लोभ लालच भी दिये जाते हैं । यह कहने के लिए बाध्य
किया जाता है कि बता दो यह यह मिला है , लेकिन जो सच्चे पुरातत्ववेत्ता होते हैं वे
सच्चे देशभक्त की तरह होते हैं, वे किसी के भी आगे झुकते नहीं ।"
सच्चे पुरातत्ववेत्ता सच्चे देशभक्त की तरह होते हैं, सही कहा आपने .
जवाब देंहटाएंसही विचार है। व्यक्ति को अपने प्रति और तथ्यों के प्रति सच्चा होना चाहिए तभी व सत्य तक पहुँच सकता है।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन महाराज!! अच्छा लगा पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंपुरातत्ववेत्ता देशों की सीमा में बंध कर काम नहीं करते। उनकी शोध-चेतना इस किस्म के विचारों से ऊपर होती है।
जवाब देंहटाएंदेशभक्ति से ऊपर का जुनून है किसी भी किस्म की शोधवृत्ति। क्योंकि इससे समूचा मानव-समाज लाभान्वित होता है। जाति-देश से परे।
bahut hi sahi likha hai aapane
जवाब देंहटाएंlagatar padh rahi hun..jari rakhen
जवाब देंहटाएं"गलत इतिहास रचने में अपना योगदान देते हैं । कई बार उन पर गलत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये भी दबाव डाला जाता है कई प्रकार के लोभ लालच भी दिये जाते हैं"
जवाब देंहटाएंसच कहा। हमारा लिखित इतिहास भी न जाने कितने समझौतों से भरा पड़ा है!
आपका ब्लाग निसंदेह बहुत ही अच्छा है जानकारी के साथ साथ रोचकता भी है। पहली बार पढा है मै इसकी फैन बन गयी हूं।.....
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