डा.लालबहादुर वर्मा अपनी पुस्तक "इतिहास के बारे में" में लिखते हैं "कोई भी फॉर्म लें, उसमें प्रार्थी के नाम के बाद के दो तीन कालम महत्वपूर्ण होते हैं, बाप का नाम जन्मतिथि पता आदि .हमें तो महज़ प्रार्थी से मतलब है तो फ़िर अन्य विवरणों की क्या आवश्यकता ?पर हम जानते हैं की बिना बाप के पहचान ही पूरी नही होगी .हमारी पहचान के लिए हमारी जन्मतिथि और पता भी ज़रूरी है यानि हमें काल( जन्मतिथि )और देश (पता) में स्थापित करके अपने अतीत यानि बाप से जोड़ा जाता है ताकि हमारी शिनाख्त हो सके. इन तीन बातों से जुड़े बगैर किसी का परिचय और अस्तित्व पहचान नही बन सकता. "
चलिए मान लेते हैं आप को पिता के नाम की ज़रूरत नही है. कहीं कोई फिल्मी डायलॉग भी याद आ रहा होगा "बाप के नाम का सहारा कमज़ोर लोग लेते हैं" लेकिन यह सच है की पिता का अस्तित्व तो होता है .भविष्य में यदि बिना बाप के संताने उत्पन्न होने लगे तब भी मनुष्य का पूर्वज तो मनुष्य ही रहेगा और उससे जुडा रहेगा उसका इतिहास.अपने अतीत को जानने में हर किसी को सुख मिलता है लेकिन हमें अपना पूरा अतीत कहाँ मालूम रहता है हमें तो केवल वही बातें याद हैं जो हमारे होश संभालने के बाद की हैं.एक या दो साल की उम्र में जब हम बिस्तर से लुढ़क कर गिर पड़े थे या मम्मी पापा या चाचा की गोद में सू-सू कर देते थे हमें कहाँ याद है ?यह बातें तो हम हमारे माता पिता व घर के अन्य लोग ही बताते हैं कि कब हमने खड़े होना सीखा ,कब हमने चलना सीखा ,कब हमने अपने हाथ से निवाला उठाकर खाना सीखा .हमारे माता- पिता ने यह कब सीखा, यह हमें दादा -दादी या नाना- नानी बता सकतें है लेकिन हमारे दादा -दादी ने यह कब सीखा और उनके दादा- दादी ने कब, यह हमें कौन बताएगा।
दरअसल अमीबा से लेकर मनुष्य होने की प्रक्रिया तक हर पीढी अपनी अगली पीढी को यह ज्ञान देती आई है और इसमे हजारों वर्ष लगे हैं .यदि इसका माईक्रो संस्करण देखना हो तो बच्चे के जन्म से लेकर उसके पांच-छः वर्ष तक की आयु की गतिविधियाँ देख लीजिये इतने वर्षों में उसे खाना-पीना,चलना,बैठना,बोलना, कपडे पहनना सब सिखा दिया जाता है.कह सकते हैं की हज़ारों साल चलने वाली फ़िल्म का यह छोटा सा ट्रेलर है।
लेकिन ऐसा है तो हमें अपना इतिहास जानने से हासिल क्या होगा ?सीधी सी बात है अतीत में हमसे जो गलतियाँ हुई हैं उन्हे जाने बगैर हम गलतियों से बचेंगे कैसे?आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है यह बात मालूम होने के लिए क्या हम हाथ जलाकर देखेंगे?यह सबक हमें इतिहास ने ही सिखाया है।
अगर इतिहास की ज़रूरत को हमने न समझा होता तो हम आज भी उसी आदिम अवस्था में निर्वस्त्र वन में घूम रहे होते .खैर छोडिये ज़्यादा पीछे क्यों जायें कम्प्यूटर वैज्ञानिक यदि कम्प्यूटर के इतिहास से वाक़िफ न होते तो और उस आधार पर शोध नही करते तो आज आप चौथी और पांचवी पीढी के कम्प्यूटर के बजाय,पहली पीढी के बडे कमरे के आकार के बड़े से कम्प्यूटर पर मेरा यह लेख पढ़ रहे होते.फिलहाल इतना ही।
आपका शरद कोकास
चलिए मान लेते हैं आप को पिता के नाम की ज़रूरत नही है. कहीं कोई फिल्मी डायलॉग भी याद आ रहा होगा "बाप के नाम का सहारा कमज़ोर लोग लेते हैं" लेकिन यह सच है की पिता का अस्तित्व तो होता है .भविष्य में यदि बिना बाप के संताने उत्पन्न होने लगे तब भी मनुष्य का पूर्वज तो मनुष्य ही रहेगा और उससे जुडा रहेगा उसका इतिहास.अपने अतीत को जानने में हर किसी को सुख मिलता है लेकिन हमें अपना पूरा अतीत कहाँ मालूम रहता है हमें तो केवल वही बातें याद हैं जो हमारे होश संभालने के बाद की हैं.एक या दो साल की उम्र में जब हम बिस्तर से लुढ़क कर गिर पड़े थे या मम्मी पापा या चाचा की गोद में सू-सू कर देते थे हमें कहाँ याद है ?यह बातें तो हम हमारे माता पिता व घर के अन्य लोग ही बताते हैं कि कब हमने खड़े होना सीखा ,कब हमने चलना सीखा ,कब हमने अपने हाथ से निवाला उठाकर खाना सीखा .हमारे माता- पिता ने यह कब सीखा, यह हमें दादा -दादी या नाना- नानी बता सकतें है लेकिन हमारे दादा -दादी ने यह कब सीखा और उनके दादा- दादी ने कब, यह हमें कौन बताएगा।
दरअसल अमीबा से लेकर मनुष्य होने की प्रक्रिया तक हर पीढी अपनी अगली पीढी को यह ज्ञान देती आई है और इसमे हजारों वर्ष लगे हैं .यदि इसका माईक्रो संस्करण देखना हो तो बच्चे के जन्म से लेकर उसके पांच-छः वर्ष तक की आयु की गतिविधियाँ देख लीजिये इतने वर्षों में उसे खाना-पीना,चलना,बैठना,बोलना, कपडे पहनना सब सिखा दिया जाता है.कह सकते हैं की हज़ारों साल चलने वाली फ़िल्म का यह छोटा सा ट्रेलर है।
लेकिन ऐसा है तो हमें अपना इतिहास जानने से हासिल क्या होगा ?सीधी सी बात है अतीत में हमसे जो गलतियाँ हुई हैं उन्हे जाने बगैर हम गलतियों से बचेंगे कैसे?आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है यह बात मालूम होने के लिए क्या हम हाथ जलाकर देखेंगे?यह सबक हमें इतिहास ने ही सिखाया है।
अगर इतिहास की ज़रूरत को हमने न समझा होता तो हम आज भी उसी आदिम अवस्था में निर्वस्त्र वन में घूम रहे होते .खैर छोडिये ज़्यादा पीछे क्यों जायें कम्प्यूटर वैज्ञानिक यदि कम्प्यूटर के इतिहास से वाक़िफ न होते तो और उस आधार पर शोध नही करते तो आज आप चौथी और पांचवी पीढी के कम्प्यूटर के बजाय,पहली पीढी के बडे कमरे के आकार के बड़े से कम्प्यूटर पर मेरा यह लेख पढ़ रहे होते.फिलहाल इतना ही।
आपका शरद कोकास
पापा आपका लेख अच्छा लगा :कोपल
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी है आपने !
आगे भी ऐसी ही पोस्ट का इन्तजार रहेगा !
मेरी शुभकामनाएं !
achhee rachna..
जवाब देंहटाएंबहुत सही जी..............
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..............
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अच्छा है आपका लेख............कुछ तो बात है इस बात में
जवाब देंहटाएंचलो, यह आश्वासन तो है कि पढ़ रहे होते इस आलेख को.
जवाब देंहटाएंएक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
जवाब देंहटाएंइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)
स्वागत है. शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंAapke blog se Puratatva se judi aur bhi jankari ki ummid hai. Apni virasat ko samarpitmereblog 'Dharohar' par bhi swagat.
जवाब देंहटाएंgood, narayan narayan
जवाब देंहटाएंbahut achhi aur shandar shuruat hai
जवाब देंहटाएंAAPKO HARDIK BADHAI
ऐतिहासिक महत्व की चीजों के बारे में आपके बहाने जानकारी मिला करेगी, यह जानकर प्रसन्नता हुई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
well done....& welcome to my blog...
जवाब देंहटाएंsahi kaha sharadji,itihaas ki jankaari bhi utni hi jaroori hai,jitni ki vartamaan ki....mere blog main aane ke liye dhanyawaad
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